SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सतं-८, वग्गो - ,सत्तंसत्तं- , उद्देसो-७ पयोगगती ततगती बंधणछेयणगती उववायगती विहायगती। एतो आरब्भ पयोगपयं निरवसेसं भाणियव्वं, जाव से तं विहायगई। सेवं भंते! सेवं भंते! ति.। *अट्ठमे सए सतमो उद्देसो समतो. 0 अट्ठमो उद्देसो 0 [४१२] रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी गुरू णं भंते! पइच्च कति पडिणीया पण्णता? गोयमा! तओ पडिणीया पण्णता, तं जहाआयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए थेरपडिणीए। गई णं भंते! पडुच्च कति पडिणीया पण्णता? गोयमा! तओ पडिणीया पण्णता, तं जहाइहलोगपडिणीए परलोगपडिणीए दहओलोगपडिणीए। समूहं णं भंते! पइच्च कति पडिणीया पण्णता? गोयमा! तओ पडिणीया पण्णता, तं जहाकुलपडिणीए गणपडिणीए संघपडिणीए। अणुकंपं पडुच्च. पुच्छा। गोयमा! तओ पडिणीया पण्णता, तं जहा-तवस्सिपडिणीए गिलाणपडिणीए सेहपडिणीए। सुयं णं भंते! पडुच्च. पुच्छा। गोयमा! तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-सुत्तपडिणीए अत्थपडिणीए तद्भयपडिणीए। भावं णं भंते! पइच्च. पुच्छा। गोयमा! तओ पडिणीया पण्णता, तं जहा-नाणपडिणीए दंसणपडिणीए चरित्तपडिणीए। [४१३] कइविहे णं भंते! ववहारे पण्णते? गोयमा! पंचविहे ववहारे पण्णते, तं जहा-आगमसुत-आणा-धारणा-जीए। जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा। णो य से तत्थ आगमे सिया; जहा से तत्थ सुते सिया, सुएणं ववहारं पठ्ठवेज्जा। णो वा से तत्थ सुए सिया; जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। णो य से तत्थ आणा सिया; जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। णो य से तत्थ धारणा सिया; जहा से तत्थ जीए सिया जीएणं ववहारं पट्ठवेज्जा। इच्चेएहिं पंचहिं ववहारं पट्टवेज्जा, तं जहा-आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं। जहा जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा तहा ववहारं पट्ठवेज्जा। से किमाह भंते! आगमबलिया समणा निग्गंथा इच्चेयं पंचविहं ववहारं जया जया जहिं जहिं तया तया तहिं तहिं अणिस्सिओवस्सितं सम्मं ववहरमाणे समणे निग्गंथे आणाए आराहए भवइ? [४१४] कइविहे णं भंते! बंधे पण्णते? गोयमा! विहे बंधे पन्नते,तं जहा-इरियावहियाबंधे य संपराइयबंधे य। इरियावहियं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधइ, तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो बंधइ, मणुस्सी बंधइ, देवो बंधइ, देवी बंधइ? गोयमा! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणीओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ, पुव्वपडिवन्नए पडुच्च मणुस्सा य, मणुस्सीओ य बंधंति, पडिवज्जमाणए पडुच्च मणुस्सो वा बंधइ, मणुस्सी वा बंधइ, मणुस्सा वा बंधंति, [दीपरत्नसागर संशोधितः] [167] [५-भगवई
SR No.003709
Book TitleAgam 05 Bhagavai Panchamam Angsuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages565
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy