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देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबद्दीवप्पमाणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ पन्नत्ताओ तं जहा- रयणा रतणुच्चया सव्वरतणा रतणसंचया, वसूए वसुगुत्ताए वसुमित्ताए वसुंधराए ।
[३३०] चउव्विहे सच्चे प० तं० जहा- नामसच्चे ठवणसच्चे दव्वसच्चे भावसच्चे ।
[३३१] आजीवियाणं चउव्विहे तवे पण्णत्ते तं जहा- उग्गतवे घोरतवे रसनिज्जूहणता जिभिंदियपडिसलीणता ।
[३३२] चउव्विहे संजमे पण्णत्ते तं जहा- मणसंजमे वइसंजमे कायसंजमे उवगरणसंजमे | चउव्विधे चियाए पण्णत्ते तं जहा- मणचियाए वइचियाए कायचियाए उवगरणचियाए ।
चउव्विहा अंकिचणता पन्नत्ता तं जहा- मणअकिंचणता वइअकिंचणता कायअकिंचणता उवगरणअकिंचणता ।
• चउत्थे ठाणे बीओ उद्देसो समत्तो .
0 तइओ-उद्धेसो 0 [३३३] चत्तारि राईओ पन्नत्ताओ तं जहा- पव्वयराई पुढविराई वालुयराई उदगराई, एवामेव चउव्विहे कोहे पण्णत्ते तं जहा- पव्वयराइसमाणे पुढविराइसमाणे वालुयराइसमाणे उदगराइसमाणे, पव्वयराइसमाणं कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ नेरइएसु उववज्जति, पुढविराइसमाणं कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति, वालुयराइसमाणं कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ मणुस्सेसु उववज्जति, उदगराइसमाणं कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ देवेसु उववज्जति ।
चत्तारि उदगा पन्नत्ता तं जहा- कद्दमोदए खंजणोदए वालुओदए सेलोदए, एवामेव चउव्विहे भावे पण्णत्ते तं जहा- कद्दमोदगसमाणे खंजणोदगसमाणे वालओदगसमाणे सेलोदगसमाणे, कद्दमोदगसमाणं भावमणपविढे जीवे कालं करेइ नेरइएस् उववज्जति, एवं जाव सेलोदगसमाणं भावमणपविढे जीवे कालं करेइ देवेस् उववज्जति ।।
[३३४] चत्तारि पक्खी पन्नत्ता तं जहा- रुतसंपण्णे नाममेगे नो रुवसंपण्णे, रुवसंपण्णे नाममेगे नो रुतसंपण्णे, एगे रुतसंपण्णेवि रुवसंपण्णेवि, एगे नो रुतसंपण्णे नो रुवसंपण्णे; एवामेव चत्तारि परिसजाया पन्नत्ता तं जहा- रुतसंपण्णे नाममेगे नो रूव संपण्णे-४;
चत्तारि परिसजाया पन्नत्ता तं जहा- पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, पत्तियं करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति;
चत्तारि परिसजाया पन्नत्ता तं जहा- अप्पणो नाममेगे पत्तियं करेति नो परस्स, परस्स नाममेगे पत्तियं करेति नो अप्पणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं करेति परस्सवि, एगे नो अप्पणो पत्तियं करेति नो परस्स |
चत्तारि परिसजाया पन्नत्ता तं जहा- पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति-४;
चत्तारि पुरिसजाया प० तं० जहा- अप्पणो नाममेगे पत्तियं पवेसेति नो परस्स परस्स-४ ।
[३३५] चत्तारि रुक्खा प० तं०- पत्तोवए पुप्फोवए फलोवए छायोवए; एवामेव चत्तारि परिस-जाया पन्नत्ता तं जहा- पत्तोवारुक्खसमाणे पप्फोवारुक्खसमाणे फलोवारुक्खसमाणे छायोवारुक्खसमाणे । ठाणं-४, उद्देसो-३
[मुनि दीपरत्नसागर संशोधित:]
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[३-ठाणं]