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________________ १२ श्रमण प्रतिक्रमण होनाक्षरं अत्यक्षरं पदहीनं विनयहीनं घोषहीनं योगहीनं सुष्ठु-अदत्तं दृष्टुप्रतीच्छितं अकाले कृतः स्वाध्यायः काले न कृतः स्वाध्यायः अस्वाध्यायिके स्वधीतं स्वाध्यायिके न स्वाधीतं अक्षरों की न्यूनता की हो। अक्षरों की अधिकता की हो पदों की न्यूनता की हो विराम-रहित पढा हो घोष-रहित पढा हो सम्बन्ध-रहित पढा हो ज्ञान अच्छी तरह से न दिया हो ज्ञान अच्छी तरह ग्रहण न किया हो अकाल में स्वाध्याय किया हो काल में स्वाध्याय न किया हो अस्वाध्यायी में स्वाध्याय किया हो अस्वाध्यायी में स्वाध्याय न किया हो उससे सम्बन्धित निष्फल हो तस्य मिथ्या मेरा दुष्कृतम् । दुष्कृत। भावार्थ आगम तीन प्रकार का है—सूत्रागम, अर्थागम और तदुभयागम (सूत्रागम-अर्थागम) । इस श्रुतज्ञान सम्बन्धी मैंने कोई अतिचार किया हो, जैसे-आगम पाठ को आगे-पीछे किया हो (पढा हो) मूलपाठ में अन्यपाठ का मिश्रण किया हो, अक्षरों की न्यूनाधिकता की हो, पदों की न्यूनता की हो, सूत्रपाठ का विराम, घोष और संबन्ध रहित उच्चारण किया हो, ज्ञान को उचित रूप में न दिया हो--पढाया हो, ज्ञान को विधि-सहित ग्रहण न किया हो, अकाल में स्वाध्याय किया हो, काल में स्वाध्याय न किया हो, अस्वाध्यायी अवस्था में स्वाध्याय किया हो, स्वाध्यायी में स्वाध्याय न किया होइस प्रकार मैंने कोई अतिक्रमण किया हो, उसका दुष्कृत निष्फल हो । २. दसणाइयार-सुत्तं अरहंतो महदेवो, जावज्जीवं सुसाहुणगुरुणो। जिणपण्णत्तं तत्तं इय सम्मत्तं मए गहियं ।। एअस्स सम्मत्तम्स पंच अइयाना पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा-- संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसथवो । जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003698
Book TitleShraman Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M001
File Size3 MB
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