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उत्तरपुराण के अनुसार विशाखनंदी शादी के लिए नहीं जाता, वह तो राज्य च्युत हो जाता है और एक राजा का दूत बनकर मथुरा जाता है। वहाँ वह एक वैश्या के मकान में बैठकर यह नजारा देखता है कि उसका भाई मुनि बना घूम रहा है।
जैनधर्म में अध्यात्म शक्ति व लब्धि का प्रयोग सांसारिक कामों के लिए वर्जित है। निदान करने पर उसका प्रायश्चित्त व आलोचना कर ली जाये तो जीवन विशुद्ध बन जाता है । पर वैर की समाप्ति तत्काल न हो तो वैर लम्बे समय तक चलता रहता है।
सत्तरहवाँ भव
वहाँ से आयु पूर्ण कर महाशुक्र कल्प में उत्कृष्ट स्थिति वाला देव हुआ ।
अठाहरवाँ भव- त्रिपृष्ट वासुदेव
देवलोक से आयुष्य पूर्ण कर पोतनपुर नगर के प्रजापति राजा व रानी मृगावती के यहाँ पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । माता ने जन्म से पूर्व सात स्वप्न देखे । जन्म के समय शिशु के पृष्ठ भाग में तीन पसलियाँ होने के कारण उसका नाम त्रिपृष्ट रखा गया। राजा प्रजापति प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव के माण्डलिक राजा थे 1
राजा प्रतिवासुदेव ने किसी ज्योतिषी से पूछा - "मेरी मृत्यु कैसे होगी ?"
ज्योतिषी कहा- "राजन् ! आपके दूत चण्डमेघ को पीटेगा, तुङ्गगिरि पर रहे केसरी सिंह को मारेगा, उसी के हाथों आपकी मृत्यु होगी।"
यह सुनकर अश्वग्रीव भयभीत हुआ। उसे अपने दूतों से ज्ञात हुआ कि प्रजापति राजा के बड़े पुत्र बहुत बलशाली हैं। राजा ने परीक्षा करने हेतु चण्डमेघ दूत को उनके पास भेजा।
राजा प्रजापति उस समय अपनी सभा में बैठा था । संगीत की झंकार से राजसभा का वातावरण इन्द्रसभा का दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। सभी सभासद व राजा संगीत का आनन्द लूट रहे थे। ठीक उसी समय चण्डमेघ दूत ने बिना सूचना दिये धृष्टतापूर्वक राजसभा में प्रवेश किया। राजा ने उस दूत का स्वागत किया। संगीत और नृत्य का कार्यक्रम कुछ समय के लिए रोककर दूत का संदेश सुना । दरबार में बैठे त्रिपृष्ट कुमार को रंग में भंग डालने की घटना से गहरा आघात लगा। उन्होंने अपने सेवकों को यह आदेश दिया कि जब दूत यहाँ से रवाना हो, तो हमें सूचित करना ।
राजा ने प्रतिवासुदेव का संदेश सुनकर दूत को विदा किया।
उधर दूत बाहर आया। उसने शहर छोड़ा। जंगल में दोनों कुमारों ने दूत को खूब पीटा। दूत के बाकी साथी भाग
गये ।
जब प्रजापति को अपने पुत्रों द्वारा दूत के अपमान का पता चला, तो वह बहुत घबराया। बहुत
वह राजा अश्वग्रीव के दरबार में पहुँचा, पर तब तक सारा खेल बिगड़ चुका था। राजा अश्वग्रीव ने समझ लिया कि मेरा काल पैदा हो गया है। इन दोनों राजकुमारों को मरवाने में ही मेरा हित है।
उसने एक योजना बनाई । अश्वग्रीव ने तुङ्गग्रीव क्षेत्र में धान की खेती करवाई और फिर प्रजापति को आदेश भेजा—“यहाँ एक क्रूर सिंह ने आतंक मचा रखा है। उसने रक्षक तक को मार दिया है। पूरा ग्राम भयग्रस्त है । अतः आप जाकर ग्रामीणों की रक्षा कीजिये।"
प्रजापति जब शालि क्षेत्र में जाने लगा तो पुत्रों ने विनय की - "हमारे होते आप जंगल में जायें, यह अनुचित है। आपके इस छोटे से कार्य को हम पूरा करेंगे।"
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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