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________________ तृतीय स्वप्न में क्षीरतरु तुमने देखा है। इसका अर्थ है कि भविष्य में क्षुद्र भाव से दान देने वाले श्रावकों को पाखण्डी श्रमण चारों ओर से घेरे रहेंगे। वह आचारनिष्ठ श्रमणों को शिथिलाचारी और शिथिलाचारी को आचारनिष्ठ समझेंगे। पाखण्डी श्रमणों की गिनती बढ़ेगी। ___ चतुर्थ स्वप्न में तूने कौआ देखा। इसका अर्थ है कि भविष्य के साधु कौआ वृत्ति अंगीकार करेंगे। अधिकांश साधु वर्ग अनुशासन मर्यादा को त्यागकर पाखण्डपूर्ण पंथों का आश्रय लेंगे। ___ पाँचवें स्वप्न में तूने सिंह को विपन्नावस्था में देखा है। इसका अर्थ है कि भविष्य में सिंह की तरह प्रबल धर्म भी निर्बल होगा। मिथ्यात्वी की पूजा होगी। ___ छठे स्वप्न में तुमने कमल देखा। इसका अर्थ है भविष्य में समय के प्रबल प्रभाव से प्रभावित होकर कुलीन व्यक्ति भी बुरी संगति में पड़कर धर्ममार्ग से विमुख होकर पापाचार का सेवन करेंगे। ___सातवें स्वप्न में जो बीज तुमने देखा है। इसका अर्थ है कि जिस प्रकार एक अविवेकी किसान बढ़िया बीज को तो निकम्मी भूमि में बोता है और सड़े गले बीज को उपजाऊ भूमि में बोता है, इसी प्रकार श्रमणोपासक भी विवेक विस्मृत होकर सुपात्र को छोड़कर कुपात्र को दान देंगे।९३ . आठवें स्वप्न में तुमने कुम्भ देखा है। इसका अर्थ है कि भविष्य में सद्गुण सम्पन्न और आचारनिष्ठ श्रमण कम होंगे।" राजा पुण्यपाल के स्वप्नों का फल जनसाधारण ने भी सुना। बहुत से लोगों ने संयम ग्रहण करने का निर्णय किया। फिर गणधर गौतम ने प्रभ महावीर से पाँचवें व छठे आरे के भरत क्षेत्र में होने वाली घटनाओं का विस्तार से वर्णन सना। इन घटनाओं को जनसाधारण ने भी सना। भविष्य को अशभ जानकर अनेकों ने साधधर्म व श्रावकधर्म स्वीकार किया। प्रभु महावीर के भगवतीसूत्र के अतिरिक्त विविध तीर्थकल्प में आचार्य जिनप्रभवसूरि ने लिखा है कि गणधर गौतम ने प्रश्न किया-"प्रभु ! आपके परिनिर्वाण के पश्चात् प्रमुख घटनायें कौन-सी होंगी?' प्रभु महावीर ने समाधान करते हुए कहा-'मेरे मोक्षगमन के तीन वर्ष और साढ़े आठ माह के पश्चात् पाँचवाँ आरा शुरू होगा। मेरे निर्वाण के १२ वर्ष बाद गणधर गौतम मोक्षगमन करेंगे। बीस वर्ष बाद सुधर्मा स्वामी को मोक्षगमन होगा और चौंसठ वर्ष बाद अन्तिम केवली जम्बू स्वामी मोक्ष पधारेंगे। जम्बू के निर्वाण के बाद भरत क्षेत्र में ये बातें उत्पन्न नहीं होंगी (१) मनःपर्यवज्ञान, (२) परम अवधिज्ञान, (३) पुलाकलब्धि, (४) आहारक शरीर, क्षपक श्रेणी, जिनकल्प, परिहार-विशुद्धि सूक्ष्मसम्पराय, यथाख्यातचारित्र, केवलज्ञान और परिनिर्वाण।९४ मेरे निर्वाण के पश्चात् मेरे शासन में २००४ युग-प्रधान आचार्य होंगे। इनमें प्रथम आर्य सुधर्मा व अन्तिम पंचम आरे के आचार्य दुःप्रसह होंगे। मेरे निर्वाण के १७० वर्ष पश्चात् आचार्य भद्रबाहु का स्वर्गारोहण होगा। उनके काल के पश्चात् अन्तिम चार पूर्व, समचतुरस्र संस्थान, वज्र ऋषभनाराच संहनन और महाप्राण ध्यान ये चार बातें भरत क्षेत्र से समाप्त हो जायेंगी। मेरे निर्वाण के पाँच सौ वर्ष पश्चात् आर्य वज्र के समय १०वाँ पूर्व और प्रथम संहनन चतुष्क नष्ट हो जायेंगे। मेरे निर्वाण के पश्चात् पालक का राज्यकाल ६० वर्ष, नन्द का राज्यकाल १५५ वर्ष, मौर्य का राज्यकाल १०८ वर्ष, पुण्यमित्र का ३० वर्ष, बलमित्र और भानुमित्र का ६० वर्ष, बरवाहन का ४० वर्ष, गर्दभिल्ल का १३ वर्ष, शक का ४ वर्ष होगा। और मेरे निर्वाण के ४७० वर्ष बाद महाराजा विक्रमादित्य सम्राट होगा, जो अपने नाम से संवत् चलायेगा। मेरे निर्वाण के ४५५ वर्ष के बाद गर्दभिल्ल के राज्य को नष्ट करने वाला कालकाचार्य होगा।९५ श्रमणों की विशुद्ध परम्परा विलुप्त हो जायेगी।'' __ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र २४७ २४७ , Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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