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________________ सुदर्शन-“प्रभु ! क्या रात्रि व दिन कभी बराबर भी होते हैं ?'' प्रभु महावीर-“चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा को दिन-रात्रि बराबर होते हैं। उस दिन १५ मुहूर्त का दिन और १५ मुहूर्त की रात्रि होती है। उस समय चार मुहूर्त में चौथाई मुहूर्त की एक पोरसी दिन और रात में होती है।" सुदर्शन-“प्रभु यथायुनिवृत्ति काल कितने प्रकार का है ?" प्रभु महावीर-"जो कोई नारकी, तिर्यंच, मनुष्य व देव अपनी आयुष्य जैसे बाँधता है उसी अनुसार पालन करता है वह यथायुनिवृत्ति काल है।" सुदर्शन-“प्रभु ! मरण काल क्या है ?" प्रभु महावीर-"शरीर से जीव का या जीव से शरीर का वियोग मरण काल है।'' सुदर्शन-“अद्धाकाल किसे कहते हैं ?'' प्रभु महावीर-"अद्धाकाल समयरूप, आवलिकारूप यावत् अवसपिर्णी काल रूप अनेक प्रकार का है।" सुदर्शन-“प्रभु ! पल्योपम और सागरोपम की क्या आवश्यकता है? क्या उनका कभी क्षय होता है या नहीं?' प्रभु महावीर-“चार गति के जीवों के माप के लिए पल्योपम और सागरोपम की आवश्यकता है।" प्रभु महावीर से अपने प्रश्नों का उचित समाधान पाकर प्रसन्न हुआ। प्रभु महावीर ने उसका पूर्वभव बताते हुए कहा-''पूर्वभव में तू एक बार महाबल नाम का राजकुमार था। तु गृहस्थ छोड़ श्रमण बना। संयम-साधना के कारण तू मरकर वह्न देवलोक दस सागरोपम आयु की स्थिति वाला देव बना। ___ वहाँ से आयुष्य पूर्ण कर तू अब सुदर्शन सेठ के रूप में उत्पन्न हुआ है। पूर्व-जन्म में भी तुम्हें जिन (जैन) धर्म के प्रति गहन श्रद्धा थी। यह श्रद्धा वर्तमान भव में भी दिखाई दे रही है। तुम्हें जिन-धर्म प्रिय था। इस जन्म में भी तूने स्थविरों से तत्त्व-ज्ञान सीखा है। अब भी तू निर्ग्रन्थ प्रवचन के प्रति आस्थावान है।" प्रभु महावीर की बातें सुनते ही सुदर्शन को जाति-स्मरण ज्ञान हो गया। उसने कहा--"प्रभु ! आपका कथन सत्य है। अब मैं श्रमण बनकर जीवन सुधारना चाहता है।" सेठ सुदर्शन साधु बन गया। उसने १४ पूर्वो का ज्ञान अर्जित किया। लम्बे समय तक साधुधर्म का पालन करते हुए कर्मों का क्षय कर डाला और मुक्ति का अधिकारी बना।७९ आनन्द को अवधिज्ञान ___ गणधर गौतम प्रभु महावीर की आज्ञा लेकर भिक्षार्थ वाणिज्यग्राम घूम रहे थे। वह वापस दूतिपलाश चैत्य की ओर लौट रहे थे। रास्ते में कोल्लाग सन्निवेश के सन्निकट उन्होंने आनन्द श्रावक के अनशन की वार्ता सुनी। ___ गौतम के मन में विचार आया कि आनन्द श्रमणोपासक प्रभु महावीर का परम भक्त है। उसने अनशन व्रत ग्रहण कर रखा है। मुझे आनन्द को देखना चाहिये। गणधर गौतम आनन्द श्रावक को दर्शन देने कोल्लाग सन्निवेश से सीधे ही आनंद की पौषधशाला में पहुंचे। गौतम को अचानक देखकर श्रावक आनन्द-प्रसन्न हो गया। वह वन्दना करना चाहता था पर कमजोरी के कारण उठ न सका। उसने विनयपूर्वक निवेदन किया--"भगवान् ! मेरी शारीरिक शक्ति अत्यधिक क्षीण हो गई है अतः मैं उठने में असमर्थ हूँ, कृपया आप इधर पधारिये जिससे मैं आपके चरणों में नतमस्तक होकर वन्दन कर सकूँ।" गौतम आनन्द के निकट गये। आनन्द ने विधिपूर्वक वन्दन किया। सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र २३१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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