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सकता। फिर भी वह चोर स्वयं को इनमें छिपा मानता है। इसी प्रकार तुम सत्य को छिपाने के लिये मिथ्यात्व का सहारा ले रहे हो। अन्य न होते हुये भी, स्वयं को अन्य बता रहे हो। तुम्हारा यह कथन योग्य नहीं है।'
केवलज्ञानी से किसी की बात कैसे छिप सकती थी? वह त्रिकाल सर्वज्ञ प्रभु थे। इसीलिए उन्होंने आने वाले खतरे को भाँपते हुए अपने श्रमणसंघ को सावधान किया। ____ गोशालक का क्रोध बढ़ रहा था, क्योंकि उसकी असलियत का भांडा भगवान महावीर ने फोड़कर जन-साधारण को उसकी असलियत की सूचना दी, लोगों को सावधान किया। प्रभु महावीर का संदेश था कि मिथ्यात्व के साथ किसी भी तरह का समझौता सम्यक्त्व के लिये घातक है। ___ गोशालक ने प्रभु महावीर को सम्बोधन करते हुये क्रोधित स्वर में कहा-"काश्यप ! तू आज ही नष्ट, विनष्ट और भ्रष्ट होगा। तेरा जीवन नहीं रहेगा।' तेजोलेश्या द्वारा दो मुनियों को भस्म करना __ गोशालक की बकवास व धमकी को सभी शिष्य व संघ ने सुना। पर प्रभु महावीर की आज्ञा को ध्यान में रखकर सब चुप रहे। ___ पूर्व देश का रहने वाला सर्वानुभूति अनगार उसी समय यह बातें सुन रहा था। वह स्वभाव का भद्र, प्रकृति से विनीत व सरल था। अपने धर्माचार्य के प्रति अपमानजनक शब्द उसके लिये असहनीय थे। उसने गोशालक की धमकी की परवाह किये बिना गोशालक को समझाया- “गोशालक ! किसी श्रमण ब्राह्मण से यदि कोई पुरुष एक भी आर्य वचन सुन लेता है, तो उन्हें वन्दना-नमस्कार करता है। पपासना करता है। पर तु कैसा शिष्य है? प्रभ महावीर ने तुम्हें शिक्षा व दीक्षा दोनों प्रदान की। तुम्हारा उनके प्रति यह अपमानजनक व्यवहार तझे शोभा नहीं देता। ऐसी बातें करना तुम्हारे लिये योग्य नहीं है।''
सुनक्षत्र मुनि की ऐसी वाणी सुनते ही गोशालक का चेहरा क्रोध से जलने लगा। उसने तेजोलेश्या से मुनि को उसी स्थान पर भस्म कर दिया।
गोशालक अब क्रोध की सीमायें पार कर चुका था। उसी समय अयोध्या निवासी सुनक्षत्र मुनि को गोशालक का यह व्यवहार सहा न गया। धर्माचार्य की आज्ञा एक तरफ थी। मुनि का शव सामने नजर आ रहा था। यह क्षमा की सीमा थी। सुनक्षत्र मुनि ने गोशालक को सर्वानुभूति की तरह समझाने का प्रयत्न किया। गोशालक को हितकारी वचन अच्छे न लगे और उसने उन पर भी तेजोलेश्या छोड दी। इस बार तेजोलेश्या का प्रभाव मन्द छटपटाते प्रभु महावीर के पास आये, समाधिमरण द्वारा आत्मालोचना की। समस्त साधु-साध्वियों से क्षमा याचना कर शरीर त्यागा। इस प्रकार दो मुनियों को गोशालक ने देखते ही भम्स कर डाला। गोशालक द्वारा प्रभु महावीर पर तेजोलेश्या प्रहार
निरपराध दो मुनियों के बलिदान से भी गोशालक की क्रोध-ज्वाला शान्त नहीं हुई। वह क्रोधावेश में अनर्गल बक रहा था। यह देखकर भगवान महावीर ने कहा-“गोशालक ! एक अक्षर देने वाला भी विद्या-गुरु कहलाता है, एक भी आर्यधर्म का वचन सुनाने वाला धर्म-गुरु माना जाता है। मैंने तो तुझे दीक्षित और शिक्षित किया है, मैंने ही तुझे पढ़ाया और मेरे ही साथ तेरा यह बरताव ! गोशालक, तू अनुचित कर रहा है। महानुभाव ! तुझे ऐसा करना उचित नहीं है।" __ प्रभु महावीर के हित-वचनों का भी विपरीत परिणाम हुआ। शान्त होने के स्थान पर गोशालक अधिक उत्तेजित हो गया। वह अपने स्थान से सात-आठ कदम पीछे हटा और तेजःसमुद्घात करने लगा। उसने क्षणभर में अपनी तेजःशक्ति को भगवान महावीर के ऊपर छोड़ दिया। उसका अटल विश्वास था कि इस प्रयोग से वह अपने प्रतिपक्ष का अन्त कर देगा, पर उसकी धारणा निष्फल सिद्ध हुई। पहाड़ से टकराती हुई हवा की तरह गोशालक-निसृष्ट तेजोलेश्या महावीर से
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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