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________________ भूमिका भारत धर्म-प्रधान देश है । यहाँ बहुत से धर्मों का जन्म हुआ है। जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। यह धर्म अनादि है, शाश्वत है | जैनधर्म में तीर्थंकर परम्परा है जिसमें २४ तीर्थंकर भरत क्षेत्र में जन्म लेते हैं। महाविदेह क्षेत्र में यह परम्परा शाश्वत रहती है। इस क्षेत्र में तीर्थंकरों का कभी अभाव नहीं रहता। भगवान ऋषभदेव प्रथम भिक्षु, प्रथम श्रमण तपस्वी, माने गये हैं। उन्हें मानव सभ्यता को असि, मसि, कृषि प्रदान की । स्त्रियों को उन्होंने ६४ कलाएँ व पुरुषों को ७२ कलाएँ सिखाईं। वह मानव सभ्यता, धर्म के आदीश्वर, विश्वकर्मा थे। उन्हीं के पुत्र के नाम से इस आर्यवर्त का नाम भारतवर्ष पड़ा। फिर एक के बाद २२ तीर्थंकरों ने श्रमण (धर्म) संस्कृति का प्रचार किया । इसी परम्परा के अन्तिम तीर्थंकर थे वर्द्धमान, ज्ञातपुत्र भगवान महावीर । प्रभु महावीर पर लिखना सूर्य को दीपक दिखाना है। पर भक्ति की शक्ति से कुछ भी असम्भव नहीं है। प्रश्न हो सकता है कि हमारे ग्रन्थ में नया क्या है ? नया कुछ नहीं है । हमने तो महापुरुषों द्वारा लिखे ग्रन्थों का अनुकरण किया है। स्पष्ट शब्दों में कहें, तो इस ग्रन्थ में हमारा अपना कुछ नहीं, मात्र पूर्व आचार्यों ने जैसे प्रभु महावीर का गुणगान किया हैं उनका पवित्र चरित्र लिखा है, हमने भी उन भक्तिपूर्ण शब्दों में अपना स्वर मिलाया है। उन्हीं का अनुमोदना किया है । यही अनुमोदन हमारी भक्ति है । निर्युक्ति साहित्य नियुक्तिकारों में आचार्य भद्रबाहु का नाम प्रमुख है। इनका समय विक्रम की ५वीं - ६वीं सदी है। आवश्यक नियुक्ति में प्रभु महावीर के २७ भवों, स्वप्न, केवलज्ञान के समय विहार का वर्णन प्राप्त होता है। इस नियुक्ति में गणधरवाद उपलब्ध है। इन्द्रभूति आदि द्वारा पावापुरी में यज्ञ का आयोजन, उसमें इन्द्रभूति आदि ११ गणधरों व उनके शिष्यों के भाग लेने का वर्णन है । फिर प्रभु महावीर से उनकी दार्शनिक चर्चाओं का वर्णन है। इस नियुक्ति पर निम्नलिखित संस्कृत टीकाएँ उपलब्ध हैं जिनका विवरण इस प्रकार है १. मलयगिरि वृत्ति २. हारिभद्रया वृत्ति ३. प्रदेश व्याख्या ४. विशेषावश्यकभाष्य ५. टीका ६. आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका ७. विशेषावश्यकभाष्य विवरण ८. चूर्णि Jain Educationa International आचार्य श्री मलयगिरि आचार्य श्री हरिभद्रसूरि मल्लधारी आचार्य श्री हेमचन्द्र जी श्री जिनभद्रगणि क्षमा श्रमण जी मल्लधारी आचार्य श्री हेमचन्द्र जी श्री विजयदानसूरि जी श्री कोट्याचार्य श्री जिनदासगणी महत्तर ९ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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