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(९) गैंडे के श्रृंग की तरह एकाकी ।
(१०) पक्षी की तरह अप्रतिबद्ध विहारी । (११) भारण्ड पक्षी की तरह अप्रमत्त । (१२) श्रेष्ठ हाथी की तरह शूरवीर । (१३) वृषभ के समान पराक्रमी ।
(१४) सिंह की तरह दुर्द्धर्ष ।
(१५) सुमेरु की तरह परीषहों को सहने में अकंप |
(१६) सागर की तरह गम्भीर |
(१७) चन्द्रमा की तरह सौम्य ।
(१८) सूर्य की तरह देदीप्यमान ।
(१९) स्वर्ण की तरह कान्तिमान ।
(२०) पृथ्वी की तरह सहनशील ।
(२१) आग की तरह जाज्वल्यमान, तेजस्वी ।
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ये गुण उनकी महानता को सिद्ध करते हैं । आखिर इंतजार की घड़ियाँ समाप्त हो रही थीं । उनके जीवन का लक्ष्य सामने दिखाई दे रहा था। १२ वर्ष तप करने का उद्देश्य पूरा होने को था।
तीर्थंकरों के जीवन का चौथा मंगलमय केवलज्ञान कल्याणक आ गया था। अब वह साधक से भगवान के रूप में प्रस्तुत होने वाले थे। समस्त जगत् के जीवों के कल्याणार्थ वह धर्म उपदेश देने वाले थे जिसकी मानव जाति को जरूरत
थी ।
उद्घृत सन्दर्भ स्थल
१. आवश्यक चूर्णि, पृ. २६८
२. आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. १८७ / १
३. आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, पृ. २१६
४. चउपन्न महापुरुष चरियं पृ. २६३-२७४
५. (क) महावीर चरिय नेमिचन्द, गाथा ५७-६७ और ३६
३७
(ख) महावीर चरियं गुणभद्र पृ. १४२-१४४
६. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पृ. १०/३/२-१५
७. कल्पसूत्र सुबोधिका
८. आवश्यक चूर्णि पृ. २६६
९. महावीर चरियं पृ. १४५
१०. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १०/३/३
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११. महावीर चरियं पृ. १४५
१२. (क) महावीर चरियं गुण १४३-१४४
(ख) त्रिपटिशलाका पुरुष चरित्र १० / ३ / २
१३. (क) आवश्यक चूर्णि, पृ. २६८
(ख) महावीर चरियं नेमिचन्द, पृ. ६३-६४ - (ग) महावीर चरिवं गुणभव, पृ. १४४ (घ) त्रिशिलाका पुरुष चरित्र १० / ३ / २ (ङ) आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. १२ (च) आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, पृ. १०७
१४. (क) महावीर चरियं ५/१४४
(ख) त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १० / ३ / ९ १५. महावीर चरियं ५/१५२
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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