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जैन आचार्य डॉ. शिवमुनि जी म. सा. का आशीर्वचन
२६००वीं महावीर जन्म कल्याण शताब्दी संयोजिका समिति पंजाब द्वारा भगवान महावीर के जीवन को संस्पर्श करने वाले सचित्र जीवन चारित्र प्रकाशित करने जा रही है। २१वीं सदी की ओर बढ़ते हुए देश में सचित्र जीवन चरित्रों की प्रधानता बढ़ रही है। सचित्र जीवन चरित्र को देखने मात्र से ही बहुत सारी बातें सामान्य व्यक्ति को भी प्रभावित कर जाती है, एवं अनेक भविजनों को आत्म बोध की ओर प्रेरित करती है। ऐसे तो भगवान महावीर के अनेक चरित्र छपे हुए हैं, लेकिन इस चरित्र की विशेषता है कि इसमें शास्त्र, चुर्णि, नियुक्ति एवं अब तक के सभी प्रकाशित चारित्रों का सहयोग लेकर उप
प्रवर्तिनी महासती श्री स्वर्णकान्ता जी म. की शिष्या महासती श्री सुधा जी म. की प्रेरणा से एवं इसका सुन्दर संपादन महासती डॉ. स्मृति जी म. ने किया है। महासती जी का पुरुषार्थ अनुमोदनीय है। प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक द्वय
२६००वे जन्म-कल्याणक वर्ष में यह एक रचनात्मक कार्य होगा जो वर्षों तक जन साधारण में एवं बालक, युवक, युवतियों एवं विद्यार्थियों का भगवान महावीर के जीवन बोध प्राप्त करने में सहयोग करेगा। इस मंगलमय कार्य के लिए हमारा आशीर्वाद एवं शुभ कामनाएँ आपके साथ हैं। विशेषतः प्रेरिका साध्वी सुधा जी म. व साध्वी जी राजकुमारी साधुवाद की पात्र हैं, आशा है है भविष्य में भी वह जिनशासन की प्रभावना के कार्यों में अग्रसर रहेगी।
प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक श्री पुरुषोत्तम जैन मंडी गोविन्दगढ़ व श्री रवीन्द्र जैन मालेर कोटला पंजाबी जैन साहित्य के प्रथम लेखक, अनुवादक व सम्पादक हैं। अब तक इनकी पंजाबी व हिन्दी भाषा में ५० के करीब पुस्तकें छप चुकी हैं। मेरे से यह दोनों चिरपरिचित है। दोनों देव, गुरु व धर्म के प्रति समर्पित है। इसका प्रमाण प्रस्तुत ग्रंथ है। मेरे शोधनिबंध के समय इन्होंने पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में मेरी काफी सहायता की थी। प्रस्तुत ग्रंथ इनके धर्म के समर्पित जीवन का जीता-जागता उदाहरण है। हर्ष का विषय है कि इन्होंने सारा साहित्य साध्वी श्री स्वर्णकांता जी म. की प्रेरणा व दिशा निर्देश में लिखा। पंजाबी भाषा में इन्होंने भगवान महावीर के चारित्र पहले लिखा था, जिसके दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत ग्रंथ का संपादन विदुषी साध्वी डॉ. स्मृति जी म. ने किया है। मैं उन्हें साधुवाद भेजती हूँ।
इनके साहित्यक कार्य से प्रसन्न होकर भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह इनको श्रमणोपासक पद से विभुषित किया। यह पंजाब में साहित्यक व सामाजिक कार्य में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। पहले इन्होंने २५००वीं महावीर निर्वाण शताब्दी समारोह समिति की स्थापना की थी। अब प्रभु महावीर का २६००वीं जन्म कल्याणक पर यह प्रस्तुत ग्रंथ समाज को अर्पित कर रहे हैं। मैं दोनों को बधाई व साधुवाद देता हूँ।
इस पुस्तक के प्रकाशन में श्री श्रीचन्द सुराना जी व उनके सुपुत्र श्री राजेश सुराना ने पुरुषार्थ कर इसे जीवनोपयोगी बनाया है, एतदर्थ साधुवाद।
मंगल मैत्री के साथ
-शिवमुनि, सूरत
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