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सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म
जावज्जीवाए जीवित हूँ तब तक ।
(जावनियमं पज्जुवासामि = जब तक नियम की, ली हुई प्रतिज्ञा की पर्युपासना करूँ)
तिविहं = करने, कराने और अनुमोदन स्वरूप तीन प्रकार से । (दुविहं करने और कराने के रूप में दो प्रकार से)
तिविहेणं तीन प्रकार से अर्थात् मणेणं = मन से, वायाए= वचन से, काएणं = शरीर से ।
न करेमि= मैं नहीं करूँ, न कारवेमि=मैं नहीं कराऊँ ।
करंतंपि अन्नं न समणुज्जाणामि=करते हुए किसी अन्य का अनुमोदन भी नहीं करूं।
तस्स उस सावध योग का । भन्ते =हे भगवान् ।
पडिक्कमामि=मैं प्रतिक्रमण करता हूँ अर्थात् उक्त पाप से पीछे हटता हूँ।
निंदामि = मैं निंदा करता हैं, पश्चात्ताप करता हूँ (आत्म साक्षो से)
गरिहामि= मैं गर्दा करता हैं, गुरु की साक्षी से विशेषतया निन्दा करता है।
अप्पाणं आत्मा को (अर्थात् पूर्वकाल से सम्बन्धित दुष्ट क्रिया करने वाली जो मेरी आत्मा-कषायात्मा उसे उस दुष्ट क्रिया से)
वोसिरामि= मैं वोसिराता हैं, त्याग करता है। विवेचन
"करेमि भन्ते" नाम से अत्यन्त प्रसिद्ध इस सूत्र का दूसरा नाम "सामायिक सूत्र" है। यह सूत्र प्रतिज्ञा स्वरूप है, निश्चित समय तक सामायिक (समभाव) में रहने की प्रतिज्ञा इस सूत्र का उच्चारण करके ग्रहण की जाती है। किसी भी पदार्थ अथवा क्रिया के त्याग अथवा सेवन के लिए प्रतिज्ञा लेना अनिवार्य है। उसके बिना चंचल चित्तवृत्तियों पर नियन्त्रण नहीं हो पाता, प्रतिज्ञा के बिना त्याग अथवा सेवन का वास्तविक फल भी प्राप्त नहीं होता।
प्रतिज्ञा की काल मर्यादा सामान्यतया व्यक्ति की इच्छा एवं शक्ति पर ही निर्भर करती है। फिर भी जिस प्रतिज्ञा पच्चक्खाण में समय का निर्देश न हो, उस पच्चक्खाण का कम से कम काल दो घड़ी (४८ मिनट) का समझना चाहिए ऐसी शास्त्रों की मर्यादा है।
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