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(१) मूल पाठ -
अर्थ
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करेमि भन्ते ! सामाइयं, सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि । जावज्जीवाए (जाव नियमं पज्जवासामि )
(२) संस्कृत छाया -
तिविह, तिविणं (दुविहं तिविहेणं)
मणेणं वायाए काएणं,
न करेमि, न कारवेमि, करंतपि अन्नं न समणुज्जाणामि ।
तस्स भन्ते ! पडिक्कमामि, निंदामि गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ।
सामायिक सूत्र (शब्दार्थ एवं विवेचना)
करोमि भदन्त ! सामायिक, सर्व सावद्यं योगं प्रत्याख्यामि ।
यावज्जीवया ( यावत् नियमं पर्युपासे)
त्रिविधं त्रिविधेन (द्विविधं त्रिविधेन)
मनसा वाचा कायेन,
न करोमि, न कारयामि कुर्वन्तमपि अन्यं न समनुजानामि । तस्य भदन्त ! प्रतिक्रमामि निन्दामि गर्हे आत्मानं व्युत्सृजामि ।
करेमि = मैं करता हूं, मैं ग्रहण करता हूँ ।
भन्ते = हे भदन्त ! हे भवांत ! हे भयांत ! हे भगवान् !
भदन्त अर्थात् कल्याणकारी, भवांत अर्थात् 'चतुर्गतिरूप भवसागर का अन्त करने वाले, भयांत अर्थात् सात प्रकार के भय का अन्त करने वाले, भगवान् अर्थात् पूज्य ।
सामाइयं = सामायिक को ।
सव्व सावज्जं = सावद्य पाप सहित, पाप वाले (ऐसे) सब । जोगं = योग को (नन, वचन और काया के व्यापार को ) । पच्चक्खामि : | = प्रत्याख्यान करता हूँ, निषेध करता हूँ, त्याग
करता है ।
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