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सामायिक सूत्र : शब्दार्थ एवं विवेचना ७५ इस सामायिक प्रतिज्ञा सूत्र में त्याग करने के लिए क्या है और पालन करने के लिए क्या है, आदि समस्त बातों का विचार भिन्न-भिन्न तेरह बिन्दुओं के द्वारा किया जाता है। सामायिक सूत्र में समाविष्ट १३ बिन्दु
(१) सामायिक ग्रहण करना-करेमि भन्ते सामाइयं-हे भगवन् ! मैं सामायिक करता हूँ।
(२) समस्त सावध योगों का त्याग-सावज्जं जोगं पच्चक्खामि - मैं सावध योगों का त्याग करता हूँ।
(३) काल का नियम-जावज्जीवाए-जीवित हूँ तब तक ।
(४, ५, ६) तोन योग--तिविहं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुज्जाणामि ।
(७, ८, ६) तीन करण-तिविहेणं मणेणं वायाए कायेणं ।
(१०, ११, १२, १३) चार प्रतिज्ञा-तस्स भंते पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। तीन प्रकार से, तीन प्रकार के सावध व्यापार को मन, वचन और काया से नहीं कखेंगा, नहीं कराऊँगा, करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करूँगा। हे भगवन् ! भूतकाल में किये गये उस पाप से पीछे हटता हूँ, आत्म-साक्षी से निन्दा करता हूँ, गुरु की साक्षी से गर्दा करता हूँ और पापयुक्त उस अपनी आत्मा का त्याग करता हूं अर्थात् भविष्य में उक्त पाप नहीं करने की प्रतिज्ञा अंगीकार करता हैं।
"करेमि भन्ते सामाइयं"हे भगवन् ! मैं सामायिक अंगीकार करता हूँ। - इस पद के द्वारा सामायिक ग्रहण करने की सूचना दी है। ये तीनों पद महान अर्थगभित हैं। अतः एक-एक पद का विस्तृत वर्णन "विशेषावश्यक' आगम ग्रन्थों में किया हुआ है। यहां तो उस पर संक्षिप्त विचार करेंगे।
प्रश्न-यह वाक्य सुनकर एक प्रश्न उपस्थित होता है कि सामान्यतया प्रत्येक वाक्य कर्ता, कर्म और करण आदि कारकों का सूचक होता है, तो उपर्युक्त वाक्य में कर्ता कौन है ? कर्म क्या है ? करण–साधन कहाँ है ? और ये तीनों परस्पर भिन्न हैं अथवा अभिन्न ?
समाधान-(१) सामायिक करने वाला "व्यक्ति" ही स्वतन्त्र होने से कर्ता है । (२) क्रियमाण (की जाने वाली) “सामायिक" ही कर्म (कार्य) है । (३) मन, वचन और काया तीनों करण हैं। (४) सामायिक, उसका
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