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________________ सामायिक सूत्र एवं रहस्यार्थ ६७ नमस्कार के द्वारा पांचों परमेष्ठियों को अर्थात् विश्व की सर्वोच्च आध्यात्मिक भूमिका में स्थित सामायिकवान् विभूतियों को वन्दन किया जाता है, जिससे साधक को भी विशुद्ध सामायिक की प्राप्ति सुलभ होती है। ___ नमस्करणीय के गुण प्राप्त करने को "नमस्कार" एक गुरु-चाबी है। अहंकार का सर्वथा त्याग करके हम जिनके प्रति नम्रता रखते हैं, आदर एवं भक्ति धारण करते हैं. उनके विशिष्ट गुणों का हमारे भीतर संक्रमण होता है। सामायिकवान् की सेवा (भक्ति) किये बिना सामायिक प्राप्त नहीं हो सकती। इस रहस्योद्घाटन के लिए ही “नमस्कार" को सामायिक का अंग मान लिया हो यह स्पष्ट समझा जा सकता है । ___नमस्कार नियुक्ति" में नमस्कार को विस्तारपूर्वक व्याख्या करके उसका विशेष महत्व बताया गया है। समाधि (सामायिक) के अभिलाषी सुज्ञ साधकों को सर्वप्रथप श्री नमस्कार मंत्र को जोवन में आत्मसात् करना चाहिए। धर्म के प्रमुख दो अंग हैं -(१) निश्चयधर्म और (२) व्यवहारधर्म । ये दोनों परस्पर संकलित हैं, एक दूसरे के पूरक हैं। निश्चय-निरपेक्ष व्यवहार अथवा व्यवहार-निरपेश निश्चय कदापि कार्य-साधक नहीं बन सकते । मोक्षरूप कार्य को सिद्धि दोनों धर्मों के सापेक्ष पालन से ही होती है। जिस प्रकार बाह्य जीवन में समस्त कार्यों की सिद्धि देह के मुख्य अंग मस्तक एवं धड़ दोनों की सापेक्षता से ही होती है। धड़विहीन मस्तक से अथवा मस्तकविहीन धड़ से कोई निश्चित कार्य-सिद्धि नहीं हो सकती। यहां भी नमस्कार सामायिक का आदि अंग है यह बताकर निश्चय-व्यवहार धर्म की पारस्परिक सापेक्षता सिद्ध की गई है। ___ व्यवहार साधन है, निश्चय साध्य है । साध्य की सिद्धि साधन (की साधना) के बिना नहीं हो सकती। प्रथम कक्षा में नमस्कार साधन है, सामायिक साध्य है जो इस प्रकार है-नमस्कार अर्थात् पूज्यों को पूजा, भक्ति, सम्मान, और आज्ञापालन के द्वारा उसके फलस्वरूप सम्यक्त्व, श्रुत एवं चारित्र सामायिक की प्राप्ति होती है। द्वितीय कक्षा में नमस्कार अर्थात् सामायिक को प्राप्ति के पश्चात् आत्म-स्वभाव-परिणमन रूप नमस्कार साध्य होता है और "सामायिक" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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