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९. सामायिक सूत्र एवं रहस्यार्थ
सामायिक के उपोद्घात का वर्णन पूर्ण हुआ । अब "सूत्र' की व्याख्या के निर्देश दिये जाते हैं । "विशेषावश्यक भाष्य" में सामायिक सूत्र की व्याख्या करने से पूर्व नवकार मन्त्र की व्याख्या की गई है, जिससे -
प्रश्न - सबके मन में सहज रूप से उठने वाला यह प्रश्न है कि व्याख्या यदि सामायिक सूत्र की करनी है तो प्रथम निर्देश नमस्कार महामंत्र का क्यों ? उसकी व्याख्या को अग्रस्थान देने का क्या कारण है ?
समाधान - नमस्कार मंत्र का प्रथम निर्देश यह सूचित करता है कि सामायिक सूत्र का पाठ (उच्चारण) नमस्कार पूर्वक ही किया जाता है । दूसरी बात यह है कि "नमस्कार" ( नवकार मंत्र) समस्त श्रुतस्कन्धों में अभ्यंतरभूत है, अर्थात् यह समस्त आगम शास्त्रों में व्याप्त है । अतः प्रथम इसकी व्याख्या करके तत्पश्चात् सामायिक सूत्र की ब्याख्या करना शास्त्रकार ने उचित माना है ।
प्रश्न - एक प्रश्न और उठता है कि नमस्कार मंत्र का प्रथम निर्देश सामायिक सूत्र के आदि-मंगल के लिए अथवा उपोद्घात नियुक्ति के अन्तिम मंगल के लिए भी किया हो ?
समाधान- नहीं, यह शंका भी उचित नहीं है, क्योंकि पूज्य भद्रबाहु स्वामीजी ने "आवश्यक सूत्र" के प्रारम्भ में "नंदी" के रूप में तथा अन्त में " प्रत्याख्यान" के रूप में मंगल किया ही है । अतः दूसरी बार मंगल करना आवश्यक नहीं है, परन्तु नमस्कार परमार्थतः सामायिक स्वरूप है, सामायिक का ही अंग है । यह बताने के लिए ही इसका प्रथम निर्देश किया है ।
उपर्युक्त चर्चा से स्पष्ट है कि नमस्कार मंत्र सामायिक का मूल है; क्योंकि नमस्कार विनम्र एवं भक्ति स्वरूप है और सामायिक धर्म स्वरूप है ।
धर्म का मूल विनय है । जिस व्यक्ति में विनय एवं भक्ति की भावना होती है, वही विशुद्ध सामायिक समता को प्राप्त कर सकता है ।
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