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शास्त्रकारों ने सामायिक की ऐसी अचिन्त्य महिमा का वर्णन किया है, जिसका पठन-मनन-परिशीलन करने से जीवन में सामायिक (समता भाव) प्रकट करने की रुचि उत्पन्न होती है और उसके उपायों का परिपालन (आचरण) करने का उत्तम बल प्राप्त होता है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ अभ्यासकर्ताओं एवं जिज्ञासुओं के लिए इस विषय की पर्याप्त सामग्री प्रदान करता है-यह हर्ष का विषय है।
-१० भद्रकरविजय गणि
लुणावा [राजस्थान] वि. संवत् २०३३, बसन्त पंचमी
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