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८. निरुक्ति द्वार
क्रिया, कारक के भेद से और पर्याय से शब्दार्थ का कथन "निरुक्ति" कहलाता है | यहाँ चारों प्रकार के "सामायिक" के पर्यायवाची नाम दिये गये हैं, जिसके अर्थ ज्ञात होने से "सामायिक" का विशेष महत्व सरलता से समझा जा सकेगा ।
(१) सम्यक्त्व सामायिक के नाम
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सम्यग्दृष्टि, अमोह, शुद्धि, सद्भाव दर्शन, बोधि, अविपर्यय, सुदृष्टि
आदि ।
(१) सम्यग्दृष्टि - अविपरीत दर्शन, आत्मा को चेतन स्वरूप में और जड़ को अचेतन स्वरूप में देखना- जानना ।
शुद्धि |
(२) अमोह - मोह वितथाग्रह, जिसमें असत्य का आग्रह न हो वह अमोह है ।
(३) शुद्धि - मिथ्यात्व रूपी मैल का नाश होने पर प्रकट होती
(४) सद्भाव दर्शन - सर्वज्ञ कथित पदार्थों का ज्ञान ।
(५) बोधि - परमार्थ- बोध |
(६) अविपर्यय - अतत्व में तत्वबुद्धि विपर्यय है, इसका अभाव वह अविपर्यय अर्थात् तत्व अध्यवसाय ।
(७) सुदृष्टि - शुभ दृष्टि ।
विशेष - सम्यग्दृष्टि वाली आत्मा जो कुछ देखे अथवा जाने, उसमें तनिक भी विपरीतता नहीं होती । आत्मा समस्त पदार्थों को सत्य स्वरूप में ही देखती है, जिससे देह आदि भौतिक पदार्थों में उसे कदापि " अहं' अथवा "मैं पन" की भावना नहीं होती। अपनी बात का अथवा अपने विचारों का उसे असद् आग्रह नहीं होता । मोह की मलिनता दूर हो जाने से उसका अन्तःकरण स्फटिक के समान स्वच्छ होता है । उसकी आत्म शुद्धि भी क्रमशः विकसित होती जाती है, जिससे जिनागम के सूक्ष्म रहस्यों का |
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