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________________ ६२ सर्वज्ञ कथित: परम सामायिक धर्म बोध और अनुभव स्पष्ट होता जाता है, केवली भगवान के वचनों के प्रति श्रद्धा सुदृढ़ होती जाती है, आत्मा और परमात्मा के मध्य भेद - अभेद का स्याद्वाद दृष्टि से बोध होता है और आत्म-तत्त्व का विशुद्ध अनुभव प्रकट होता जाता है । तत्त्वानुभूति होने पर विपर्यास- बुद्धि का चिन्ह तक नहीं रहता, जिससे अतत्त्व में तत्त्वबुद्धि अथवा तत्त्व में अतत्त्वबुद्धि उत्पन्न होती है और जिसकी बुद्धि अविपरीत होती है उसकी दृष्टि शुभ (सत्) होती है, उसकी विचारधारा भी शुभ होती है । (२) श्रुत सामायिक के पर्यायवाची नाम अक्षर, अनक्षर, संज्ञी, असंज्ञी, सम्यग् मिथ्या, सादि, अनादि, सपर्यवसित, अपर्यवसित, गमिक, अगमिक, अंग प्रविष्ट, अनंग- प्रविष्ट । इस प्रकार श्रुत ज्ञान के १४ भेदों का पर्यायवाची नामों के रूप में उल्लेख किया गया है । इनके अर्थ "कर्मग्रन्थ " आदि ग्रन्थों से ज्ञान कर लें । (३) देशविरति सामायिक की निरुक्ति , विरताविरति संवृतासंवृत, बाल- पण्डित, देशैकदेशविरति, अणुधर्म और आगारधर्म = ये समस्त देशांवरति के पर्यायवाची शब्द हैं । (१) विरताविरति - जिस निवृत्ति में अमुक पाप की विरति और अमुक पाप की अविरति होती है वह । (२) संवृता संवृत - जिस सामायिक में कुछ सावद्य योगों का त्याग और कुछ का त्याग नहीं होता वह । (३) बाल - पण्डित - विरति एवं अविरति रूप उभय व्यवहार का अनुकरण करने वाला होने से वह "बाल - पण्डित" कहलाता है । (४) देश- एकदेशविरति देश स्थूल प्राणातिपात आदि । एकदेश -- वृक्ष छेदन आदि, उन दोनों की विरति जो नियम में हो वह । -- (५) अणुधर्म - सम्पूर्ण साधु धर्म की अपेक्षा से धर्मन्यून (अल्प ) प्रमाण में धर्म होने से अणुधर्म" कहलाता है । " सम्यक्त्व सामायिक में जिनोक्त धर्म के प्रति प्रबल श्रद्धा मात्र थी । यहाँ धर्म का आंशिक आचरण भी है। श्रद्धा के साथ आचरण के मिश्रण से यहाँ पूर्व की समता की अपेक्षा विशेष प्रकार की समता होती है । उक्त समता के प्रकर्ष की उत्तरोत्तर वृद्धि होने पर सर्वविरति सामायिक भाव प्रकट होता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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