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६० सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म के एक-एक रजकण से पवित्रता की प्रेरणा प्राप्त करके अपनी आत्मा को कृतकृत्य करते हैं, अपूर्व भावोल्लासपूर्ण हृदय से यात्रा, पूजा, भक्ति करके अपना जीवन धन्य करते हैं।
__इसी प्रकार से "भाव स्पर्शना" के सम्बन्ध में विचार करने से सुविशुद्ध भाव जागृत करने की अपूर्व प्रेरणा प्राप्त की जा सकती है, जैसे
___ मैं जिस अक्षरात्मक श्रुत का अध्ययन, मनन, चिन्तन करता है, उस "श्रुत" का मेरे अनन्त आत्म-बन्धु स्पर्श कर चुके हैं तथा जिस सम्यक्त्व, देशविरति और सामायिक धर्म की आराधनार्थ मैं उत्कंठित हुआ हूँ, उस सामायिक धर्म की आराधना तो अनन्त सिद्ध भगवानों ने अपने पूर्व-जीवनों में अनेक बार की है। इतना ही नहीं, परन्तु अनन्त आत्माओं को सिद्धि का सनातन सुख प्रदान करने वाला यह सामायिक धर्म ही है ।
भूतकाल में, वर्तमानकाल में और भविष्यत्काल में जो आत्मा पंचपरमेष्ठी पद पर आसीन हुए हैं, हो रहे हैं और होने वाले हैं, वह सब प्रभाव-प्रताप इस सामायिक धर्म का ही है।
ऐसे महान प्रभावशाली, सर्व सिद्धिदायक सामायिक धर्म की मंगल आराधना करने के लिए यह कैसा उत्तम अवसर प्राप्त हुआ है।
अनन्त सिद्ध आत्माओं द्वारा स्पर्श किये गये इस सामायिक धर्म की आराधना करके उसे मैं अपनी आत्मा के प्रत्येक प्रदेश में इतना आत्मसात् कर लं कि जिससे मेरी आत्मा भी परम पवित्र, प्रसन्नचित्त एवं प्रशान्त बनी रहे । ऐसी-ऐसी उत्तम प्रकार की भावनाओं के द्वारा साधक अपनी साधना को प्राणवान बनाकर उसमें अधिकाधिक स्थिरता एवं तन्मयता प्राप्त कर सकता है।
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