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५.० सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म विलक्षण बाह्य सिद्धि-समृद्धि का स्वामी भी सामायिक आदि धर्म के बिना दरिद्र नारायण है।
सम्राट श्रेणिक पुनिया श्रावक की सामायिक क्रय करने के लिए अपनी सम्पूर्ण राज्य लक्ष्मी दाव पर लगाने के लिये तत्पर हो गये थे, परन्तु उस पुनिया के मन में सामायिक का मूल्य अपार था।
बाह्य सत्ता अथवा सम्पत्ति के लिये सामायिक का विक्रय असम्भव है, सर्वथा असम्भव है । सामायिक आन्तरिक जगत की अमूल्य सम्पत्ति है, जिसकी तुलना में तीनों लोकों की समृद्धि तुच्छ है ।
मानव होकर जो सामायिक से वंचित रह जाता है, वह जन्म-जन्म की संचित पुण्य निधि को नष्ट करके भव-सागर की दुःखपूर्ण दीर्घ यात्रा करने वाला एक पुण्यहीन पथिक बन जाता है।
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