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६. सामायिक की स्थिति
उत्कृष्ट स्थिति
(१) सम्यक्त्व एवं श्रुत सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक छासठ सागरोपम है, जो इस प्रकार है
कोई जीव क्षयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त करके दो बार विजय आदि अनुत्तर विमान में अथवा तीन बार अच्युत में जाकर फिर मोक्ष प्राप्ति करता है, उसे यह उत्कृष्ट स्थिति लागू हो सकती है।
(२) देशविरति एवं सर्वविरति सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति देशोनपूर्वकोटीवर्ष अर्थात् कुछ न्यून एक कोटी पूर्व है। इस स्थिति से अधिक आयु वाले मनुष्य अथवा तिर्यंच दोनों (देशविरति अथवा सर्वविरति) सामायिक प्राप्त नहीं कर सकते। जघन्य स्थिति
(१) सम्यक्त्व, श्रुत एवं देशविरति सामायिक की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है।
(२) सर्व विरति सामायिक की जघन्य स्थिति एक समय की है जो इस प्रकार है-किसी जीव की सर्वविरति प्राप्त होने के पश्चात् ही आयु पर्ण हो जाये तो समय मात्र स्थिति घंट सकती है। उपयोग की अपेक्षा से तो चारों सामायिक की स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है।
उपयुक्त स्थितिमान लब्धि के अनुसार और एक जीव की अपेक्षा से कहा गया है। अने जीवों के आश्रित होकर तो समस्त सामायिक समस्त कालों में होती हैं । सामायिक का स्थितिमान के द्वारा चिन्तन करने से भी उसकी दुर्लभता का ज्ञान हमें सहज ही में हो जाता है।
अटवी में परिभ्रमण करता प्रत्येक जीवात्मा अनन्त पुद्गलपरावर्तनकाल के पर चात् ही चरमपुद्गलपरावर्तन में प्रविष्ट होता है और तब उसे चरम-यथाप्रवृत्तिकरण (वैराग्य के तीव्र परिणाम) उत्पन्न होते हैं । तत्पश्चात् क्रमशः अपूर्वकरण के द्वारा ग्रन्थि-भेद होने पर सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक की प्राप्ति होती है।
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