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________________ सामायिक का विषय ४७ भव में हम लोगों के मन और नेत्रों को आनन्द देने वाले बनें।" वहाँ से मृत्यु होने पर दोनों देव हुए, जहां से च्यव कर एक वासुदेव (कृष्ण) और दूसरा बलदेव हुआ। इस प्रकार अनुभूत संकट से भी किसी पुण्यात्मा को सामायिक प्राप्त होती है। (8) अनुभूत उत्सव में भी किसी विरले को ग्वालिन की तरह सामायिक प्राप्त होती है। (१०) किसी अन्य श्रेष्ठ ऋद्धि वाले को देखकर भी किसो विरले को दशार्णभद्र की तरह सामायिक प्राप्त होती है। (११) सत्कार प्राप्त करने की अभिलाषा रखने पर भी जिसका सत्कार नहीं हुआ ऐसे इलापुत्र की तरह भव-वैराग्य हाने से कोई सामायिक प्राप्त करता है। इस प्रकार भिन्न-भिन्न निमित्तों से लघुकर्मी आत्मा को संसार की विचित्रता समझ में आने पर संवेग, निर्वेग आदि गुण पुष्ट होकर सामायिक धर्म की प्राप्ति होती है। जिज्ञासुओं को आवश्यक नियुक्ति आदि ग्रन्थों से विशेष विवरण गुरुगम से ज्ञात कर लेना चाहिये । इस प्रकार अभ्युत्थान, विनय, पराक्रम और साधु-सेवा से भी सम्यग्-दर्शन, सम्यग-ज्ञान, देशविरति अथवा सर्व विरति सामायिक प्राप्त होती है। __ साधु भगवन्तों की सम्मानपूर्वक विनय एवं सेवा करने से विनीत जानकर वे धर्मोपदेश देने के लिए तत्पर होते हैं और धर्म श्रवण से वैराग्य उत्पन्न होने पर सामायिक प्राप्त होती है तथा क्रोध आदि कषायों पर विजयी होने के लिए पराकम करने से भी सामायिक प्राप्त होती है। ** Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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