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१४६ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म
आदि सामायिक की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकार से भी सामायिक धर्म की प्राप्ति होती है, जिसके विषय में "आवश्यक सूत्र" में दृष्टान्त के साथ विचार किया गया है, जिसका संक्षिप्त सार निम्नलिखित है
(१) अनुकम्पा-जीवों की अनुकम्पा से भी "वैद्य" की तरह शुभ परिणाम आने से सामायिक प्राप्त हो सकती है।
(२) अकाम निर्जरा से भी "मिंढ" की तरह शुभ परिणाम आने से सामायिक प्राप्त हो सकती है ।
(३) बाल-तप से भी “इन्द्रनाग" की तरह शुभ परिणाम आने से सामायिक प्राप्त हो सकती है।
(४) यथाशक्ति श्रद्धापूर्वक सुपात्र को दान देने से "कृतपुण्य" की तरह शुभ परिणाम आने से सामायिक प्राप्त हो सकती है।
(५) विनय की आराधना करने वाले 'पुण्यशाल सुत" की तरह शुभ परिणाम आने से सामायिक प्राप्त हो सकती है।
(६) विभंगज्ञानी होते हुए भी किसी पुण्यशाली को "शिवराजर्षि" की तरह शुभ परिणाम आने से सामायिक प्राप्त हो सकती है।
(७) अनुभूत द्रव्य-संयोग का वियोग होने पर संसार की नश्वरता का विचार आने से मथुरा नगरी के दो वणिकों की तरह भी सामायिक धर्म प्राप्त हो सकता है।
(८) अनुभूत संकट से भी कोई आत्मा सामायिक प्राप्त करती है। जिस प्रकार दो भाइयों द्वारा बैलगाड़ी के पहियों के नीचे मार डाली गई उल्लंडी (एक प्रकार का साँप) मनुष्य भव में स्त्री के रूप में उत्पन्न हई और क्रमशः उसके हो गर्भ से दोनों भाइयों ने पुत्रों के रूप में जन्म लिया, परन्तु पूर्व वैर के संस्कारों से गर्भपात आदि कराके पूत्रों को मार डालने की इच्छा होती है और उत्पन्न होने के पश्चात् उनकी हत्या करने के लिए दासी को सौंपती है। उसके पिता वहाँ उनका पालन-पोषण कराते हैं। भिक्षार्थ आये मुनि को वह वैर का कारण पूछती है। पूर्व-वृत्तान्त सुनकर पिता विरक्त होकर दीक्षा ग्रहण करता है। दोनों भाई भी पिता के प्रति राग के कारण दीक्षा अंगीकार करते हैं। घोर तप, जप, क्रिया आदि करके वे निमंल संयम का पालन करते हैं और संकल्प करते हैं कि"यदि इस तप, नियम, संयम का कोई फल प्राप्त होता हो तो आगामी
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