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सामायिक की विशालता | ३६
और उन दा का पूर्वप्रतिपन्न होता है, नरक गति में से निकला हुआ जीव यदि तिर्यंच में उत्पन्न हुआ हो तो सर्वविरति के अतिरिक्त तीन और मनुष्य गति में उत्पन्न हुआ हो तो चारों सामायिक प्राप्त कर सकता है, पूर्व प्रतिपन्न तो होता ही है ।
(ख) तिर्यंच गति में स्थित जीव आद्य तीन सामायिक प्राप्त कर सकता है और सामायिक प्राप्त किये हुए जीव तो होते ही हैं। वहाँ से निकलकर देव गति और नरक गति में उत्पन्न होने वाले जीव आद्य दो और तिर्यंच में उत्पन्न होने वाले जीव आद्य तीन और मनुष्य गति में उत्पन्न होने वाले जीव चारों सामायिक प्राप्त कर सकते हैं, पूर्वप्रतिपन्न तो होते ही हैं। (ग) मनुष्य गति में स्थित जीव चारों सामायिक का प्रतिपत्ता और पूर्वप्रतिपन्न होता है । वहाँ से निकले हुए जीव को देव गति तथा नरक गति में दो और तिर्यंच में तीन सामायिक उभय रीति से होती हैं ।
(घ) देव गति में स्थित जीव आद्य दो सामायिकों का प्रतिपत्ता और पूर्व प्रतिपन्न होता है । वहाँ से व्यव कर यदि जीव तिर्यंच में आता है तो तीन और मनुष्य में चारों सामायिक दोनों प्रकार से होती हैं ।
एक गति में से दूसरी गति में गमनागमन करता कोई भी जीव अन्तराल गति में कोई भी सामायिक प्राप्त नहीं करता, केवल आद्य दो सामायिकों का पूर्व प्रतिपन्न हो सकता है ।
उपर्युक्त द्वार के चिन्तन से “सर्वविरति सामायिक" की अत्यन्त दुर्लभता एवं महत्ता समझी जा सकती है ।
मोक्ष का अधिकारी मनुष्य ही है क्योंकि वही सर्वविरतिधर हो सकता है । तत्व- चिन्तन में ही सदा रत रहने वाले अनुत्तरवासी देव भी "सर्वविरति" प्राप्त करने के लिए मानव जन्म प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं और उसे प्राप्त करके मानव-जीवन में सम्पूर्ण संयम की सुविशुद्ध साधना करके आत्मा के शुद्ध-बुद्ध पूर्ण स्वरूप को प्राप्त करते हैं । " चारित्र बिन मुक्ति नहीं" यह उक्ति मुक्ति की प्राप्ति के लिए " चारित्र” की अनिवार्यता बताती है ।
(३१) आश्रवकरण द्वार - मिथ्यात्वमोहनीय आदि कर्मों की निर्जरा करने वाला जीव कोई भी सामायिक प्राप्त कर सकता है। जो जीव पूर्व प्रतिपन्न होता है वह तो कर्म-बन्धन भी करता है कर्म-क्षय भी करता है ।
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