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४. सामायिक की विशालता
इस विराट विश्व में सामायिक कितनी व्यापक है; जिसका पूर्ण ज्ञान इन क्षेत्र, दिशा, काल आदि ३६ द्वारों से की जाने वाली सामायिक के चिन्तन से हो सकता है।
(:) क्षेत्र द्वार-क्षेत्र = लोक; सामान्यतया सामायिक तीनों लोकों (ऊर्ध्व, अधः और मध्य) में होती है। 'प्रतिपद्यमान' एवं 'पूर्वप्रतिपन्न' की अपेक्षा से इसमें विशेषता होती है, जो इस प्रकार है :
(१) प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से सम्यक्त्व एवं श्रत सामायिक की प्राप्ति तीनों लोकों में हो सकती है, देशविरति सामायिक की प्राप्ति तिर्खा लोक में हो सकती है और सर्वविरति सामायिक की प्राप्ति मनुष्य लोक में हो सकती है।।
(२) पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से प्रथम तीन सामायिक (सम्यक्त्व, श्रु त और देशविरति) प्राप्त किये हुए जीव तीनों लोकों में होते हैं और सर्वविरति सामायिक प्राप्त जोव अधो एवं तिछ लोक में नियमा होते तथा ऊर्ध्व लोक में क्वचित् (लब्धि-धारी मुनिगण मेरू पर्वत पर जा रहे हों उस अपेक्षा से) होते हैं।
(२) दिशा द्वार-पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण-इन चारों दिशाओं में विवक्षित समय के आश्रित चारों सामायिकों को स्वीकार करने वाले जीव होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न तो प्रत्येक दिशा में अवश्य होते ही हैं ।
___ (३) काल द्वार-सम्यक्त्व एवं श्रुत सामायिक दोनों तरह से भरत ऐरवत क्षेत्र के आश्रित होकर छःओं आरों में होती हैं। देशविरति तथा
१ प्रतिपद्यमान-सामायिक की प्राप्ति के समय जीव "प्रतिपद्यमान" कहलाते हैं। पूर्वप्रतिपन्न-मायिक की प्राप्ति हो जाने पर वे ही जीव "पूर्वप्रतिपन्न" कह
__लाते हैं। २ महाविदेह में आई हुई "कुबड़ीविजय" जो अधोलोक मानी जाती है ।
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