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सर्वज्ञ कथित: परम सामायिक धर्म
(२) अधिगम से - अनेक व्यक्तियों को सद्गुरु आदि से धर्म-श्रवण करने से होता है ।
सम्यक्त्व के भेद
(१) औपशमिक, (२) क्षायोपशमिक, (३) क्षायिक, (४) सास्वादन और (५) वेदक - यह पाँचों प्रकार का सम्यक्त्व निसर्ग और अधिगम दोनों प्रकार से होता है । अतः सम्यक्त्व सामायिक के दस भेद किये जा सकते हैं; तथा कारक, रोचक एवं दीपक इन तीन प्रकार के सम्यक्त्व का भी शास्त्रों में निरूपण हो चुका है । सम्यक्त्व की पहचान शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिकता इन पांच लक्षणों से होती है ।
(३) चारित्र सामायिक - विरतिस्वरूप सामायिक के मुख्य दो भेद होते हैं
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(१) देशविरति चारित्र - सावद्य - पाप व्यापारों का अंशतः त्याग । यह चारित्र अणुव्रत, गुणव्रत एवं शिक्षाव्रत (बारह व्रत ) आदि की अपेक्षा से अनेक प्रकार का है ।
(२) सर्वविरति चारित्र - समस्त सावद्य (पाप) व्यापारों का सर्वथा त्याग; इसके निम्नलिखित तीन एवं पाँच भेद होते हैं
तीन भेद - - ( १ ) क्षायिक चारित्र, (२) क्षायोपशमिक चारित्र, (३) औपशमिक चारित्र ।
पाँच भेद - ( १ ) सामायिक, (२) छेदोपस्थापनीय, (३) परिहारविशुद्धि, (४) सूक्ष्म संपराय, (५) यथाख्यात ।
इन भेद-उपभेदों का विचार स्थूल दृष्टि से किया गया है। सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर चारित्र के असंख्य भेद हो सकते हैं, क्योंकि संयम श्रेणी में अध्यवसाय स्थान असंख्य लोकाकाश जितने होते हैं ।
चारित्र आत्मा का विशुद्ध परिणाम स्वरूप है। अतः अध्यवसायों में होने वाली विशुद्धि के भो तारतम्यता के अनुसार चारित्र में भी इतने ही प्रकार हो सकते हैं ।
( ४ ) सामायिक के अधिकारी कौन ?
सामायिक के समान महान् मोक्ष-साधना उसके योग्य अधिकारी के बिना सफल कैसे हो सकती है ? सामायिक के वास्तविक अधिकारी कैसे होने चाहिये - यह यहाँ बताया जायेगा ।
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