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________________ मामायिक का स्वरूप सामायिक गुण है। गुण कदापि गुणी से भिन्न नहीं रह सकता। अतः सामायिक आत्मा में निहित गुण ही है। उपर्युक्त दोनों दृष्टियों से सामायिक आत्म-स्वरूप एवं गुण-स्वरूप अपेक्षा से भिन्न होते हुए भी वस्तुतः तो एक ही है और वह आत्मा ही है । यदि आत्मा ही सामायिक हो तो क्या विश्व की प्रत्येक आत्मा सामायिक कही जायेगी ? नहीं कही जायेगी; जो सावध पाप-क्रियाओं का त्याग करके और निरवद्य-धम व्यापार में सदा उपयोगी हो ऐसी आत्मा को ही सामायिक कहा जाता है । इनके अतिरिक्त अन्य आत्माओं को सामायिक नहीं कहा जा सकता। संसारी अवस्था में रहा हुआ व्यक्ति ज्ञानावरणीय आदि कर्मों से आवृत होता है, तथा अज्ञान एवं राग-द्वेष आदि की पराधीनता के कारण विभाव दशा में मग्न रहता है। इस कारण इसे अज्ञानी, रागी अथवा द्वेषी कहते हैं, परन्तु जो व्यक्ति सावध योग के परिहार एवं अहिंसा आदि धर्म के सेवन से विभावपूर्वक रमण करता है, तब उसमें क्रमशः ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि गुण प्रकट होते हैं। अतः ऐसे व्यक्ति को 'सामायिक' कहा जाता है। (३) सामायिक के प्रकार आत्मा ही सामायिक है, यह बात निश्चय नय की अपेक्षा से है, 'परन्तु व्यवहार नय की अपेक्षा से तो अवस्था भेद के अनुसार सामायिक के अनेक प्रकार हो सकते हैं । मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं (१) श्रत सामायिक-गीतार्थ सद्गुरुओं से विनय एवं सम्मानपूर्वक शास्त्रों का अध्ययन करना; शास्त्राध्ययन भी सूत्र से, अर्थ से और दोनों से- इस प्रकार तीन तरह से हो सकता है। संक्षेप में ये तीन भेद और विस्तार से चौदह अथवा बीस भेद भी श्रुत सामायिक के होते हैं। (२) सम्यक्त्व सामायिक-जिन-भाषित तत्त्वों के प्रति दृढ़ श्रद्धा अथवा सुदेव, सुगुरु और सुधर्म के प्रति अचल श्रद्धा ही सम्यक्त्व सामायिक है। सम्यक्त्व का उद्भव दो प्रकार से (१) निसर्ग से -किसी व्यक्ति को गुरु आदि के उपदेश के बिना स्वाभाविक तौर से होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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