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________________ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म भी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता । श्रुत, सम्यक्त्व एवं विरति स्वरूप तीन प्रकार की सामायिक में समस्त गुणों का अन्तर्भाव हुआ है; क्योंकि ज्ञान, दर्शन और चारित्र से बढ़कर अन्य कोई सद्गुण इस विश्व में नहीं है, अर्थात् समस्त गुणों का रत्नत्रयी में समावेश हो जाता है । इस कारण ही तो रत्नत्रयी स्वरूप सामायिक में समस्त धर्मानुष्ठान, समस्त योग, एवं समस्त गुण समाविष्ट ही हैं। इस रत्नत्रयी की उज्ज्वल आराधना ने अनन्त आत्माओं को शाश्वत सुख प्रदान किया है और करेगा । (२) सामायिक क्या है ? ८ जिन - शासन स्याद्वादमय है, जहाँ प्रत्येक पदार्थ का निरूपण स्याद्वाद शैली से ही किया जाता है । स्याद्वाद एक ही पदार्थ में निहित विभिन्न धर्मो का गौण एवं प्रमुख रूप से निरूपण करके पदार्थ के स्वरूप का पूर्ण ज्ञान कराता है । सामायिक धर्म विषयक प्रस्तुत चिन्तन भी अनेकान्तदृष्टि से ही प्रस्तुत किया जाता है । जिसका इतना अद्भुत माहात्म्य जिनागमों में मुक्त कण्ठ से गाया गया है, वह सामायिक क्या है ? किसी भी जिज्ञासु के हृदय में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है । सामायिक क्या जीव है, जड़ है, द्रव्य है अथवा गुण है ? इस प्रश्न के समाधान में शास्त्रकार महर्षि का कथन है कि 'आत्मा ही सामायिक है !" जड़ कदापि सामायिक नहीं हो सकता और द्रव्य दृष्टि से सोचने पर सामायिक द्रव्य है तथा पर्यायदृष्टि से सामायिक गुण है । यहाँ 'द्रव्य' शब्द भी आत्मा का ही वाचक है । 'गुण' से आत्मा के ज्ञान आदि गुणों का ही ग्रहण होता है। इस प्रकार सामायिक 'जीव' है, परन्तु जड़ नहीं, यह सिद्ध होता है । 'आत्मा ही सामायिक है' यह बात आत्मा से साथ सामायिक का अभेद सम्बन्ध बताती है और इसके द्वारा सामायिक की भी आत्मा की तरह अनादि नित्यता - अनश्वरता सिद्ध होती है । सामायिक आत्मा का ही गुण है । आत्मा में निहित ज्ञान आदि गुणों का क्रमिक विकास ही सामायिक का प्रकटीकरण है । १ आया खलु सामाइयं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only - विशेषा. भाष्य www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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