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________________ सामायिक का स्वरूप (२) अवश्यकरणीय - - मुमुक्षु आत्मा के पाप से मुक्त होने के लिये जो नियमित आचरण योग्य है । (३) ध्रुव (४) निग्रह - जिससे इन्द्रियों एवं कषाय आदि शत्रुओं का दमन ( निग्रह ) किया जाता है । सामायिक (समता भाव ) द्वारा ही विषय कषायों के आवेश पर नियन्त्रण किया जा सकता है । - जो कर्म से मलिन बनी आत्मा को निर्मल ( विशुद्ध) करता है । (५) विशुद्ध (६) अध्ययन -षट्क – जो सामायिक आदि छः अध्ययनात्मक है । (७) वर्ग - जिससे राग-द्व ेष आदि दोषों के समूह का परिहार होता है अथवा जो छः अध्ययन का एक वर्ग है, समूह है । - जो इष्ट अर्थ को सिद्ध करता है, जो मोक्ष का अमोघ उपाय है, जिसके द्वारा कर्म- शत्र ुओं द्वारा छीन ली गई अपनी गुण-सम्पत्ति आत्मा को पुनः प्राप्त होती है । (८) न्याय ( 8 ) आराधना (१०) मार्ग - यह सामायिक शाश्वत है । अर्थ से यह अनादि, अनन्त है । Jain Educationa International - आराध्य - मोक्ष प्राप्ति के उद्द ेश्य से की जाती है वह, आराधना 'सामायिक' आदि मोक्ष के अनन्य साधन हैं, अतः 'आराधना' है । -- जो मोक्ष नगर में पहुंचा देता है; जिस प्रकार मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति इच्छित स्थान पर पहुँच सकता है, उसी प्रकार से मोक्षाभिलाषी आत्मा के लिये सामायिक आदि राज-मार्ग हैं | इस प्रकार सामायिक प्रथम आवश्यक होने से उपर्युक्त दसों नामों के विशेष अर्थ सामायिक में भी समाविष्ट हैं; अर्थात् उपर्युक्त समस्त गुणों की सिद्धि सामायिक के द्वारा होती है, अतः इसके 'आवश्यक' आदि नाम भी यथार्थ हैं । कहा भी है कि - " समभाव स्वरूप सामायिक आकाश की तरह समस्त गुणों की आधार है ।" सामायिक- विहीन व्यक्ति वास्तव में किसी भी गुण का विकास नहीं कर सकता, आत्म- लक्ष्यी साधना की कोई For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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