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________________ ( २१ ) (३) एक लोगस्स का काउस्सग्ग “कायोत्सर्ग" का बोधक है । (४) प्रकट लोगस्स “चतुर्विंशतिस्तव" का बोधक है। (५-६) “करेमि भन्ते" सूत्र के उच्चार के द्वारा “सामायिक" एवं सावद्य योग के "प्रत्याख्यान" का निर्देश है । इस प्रकार "सामायिक धर्म" की आराधना और उसे स्वीकार करने की स्मृति कराने के लिये श्रमण संघ में प्रतिदिन नौ बार “करेमि भन्ते सुत्र" का प्रयोग होता है और श्रावक संघ के लिये "बहसो सामाइयं कुज्जा" बार बार सामायिक करने का शास्त्रीय विधान है। सामायिक ग्रहण करने की विधि में जिस प्रकार छः आवश्यकों की व्यवस्था की गई है; उसी प्रकार से "प्रतिक्रमण" की विधि में भी विस्तृत रीति से छः आवश्यकों की आराधना का समावेश है। चतुर्विध संघ में उभय काल “प्रतिक्रमण आवश्यक" की विधि अत्यन्त प्रसिद्ध है; अवश्य करने योग्य कर्तव्यों के रूप में सभी लोग इनसे परिचित हैं। सामायिक एवं प्रतिक्रमण आदि आवश्यक प्रक्रियायें प्रणिधान, भावोल्लास एवं एकाग्रता पूर्वक करने से उनके सूक्ष्म रहस्य एवं उत्तम परिणाम साधक के अनुभव में आये बिना नहीं रहते। सामायिक और प्रतिक्रमण ध्यान एवं सामाधि स्वरूप हैं इसकी भी प्रतीति होगी। उपयोग (एकाग्रता) पूर्वक की जाने वाली “सामायिक" आदि आवश्यकों की आराधना “महान् राजयोग" एवं “समाधियोग" है । इस प्रकार 'सामायिकधर्म' समस्त योगों का सार एवं समस्त योगों का सिरमौर होने से "योगाधिराज" है । जिनकी कृपा, प्रेरणा एवं मार्गदर्शन के बल से सामायिक धर्म के परम रहस्यों को यत्किचित रूप में समझने के लिये, आत्मसात् करने के लिये और स्व-पर आत्मा के हितार्थ भाषाबद्ध करने के लिये स्वल्प उद्यम कर सका है; उन परमोपकारी, पूज्यपाद पन्यास प्रवर श्री भद्र कर विजय जी महाराज के अगणित उत्तम गुणों एवं मुझ पर किये गये असीम उपकारों को बार बार स्मरण करने के साथ उनके पावन चरण कमलों में अनन्तशः वन्दना करके कृतार्थता-कृतज्ञता का अनुभव करता हूँ। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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