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अन्त में इस ग्रन्थ-लेखन में शास्त्रकार ज्ञानी पुरुषों के आशय से विरुद्ध जाने-अजाने कुछ भी लिखा गया हो उसके लिये विविध से "मिच्छामि दुक्कडम्" देकर सभी मुमुक्ष आत्मा इस सामायिक धर्म के उपासक (आराधक) बनें यही मंगल कामना ।
-आचार्य विजयकलापूर्ण सूरि
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