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( २० ) आवश्यक और आचार
सामायिक आदि आवश्यकों के द्वारा पाँचों ज्ञान आदि आचारों की शुद्धि एवं पुष्टि होती है।
(१) “सामायिक" के द्वारा सावध योग की विरति एवं निरवद्य योगों का सेवन होने से मुख्यतः चारित्राचार की विशुद्धि होती है ।
(२) "चतुर्विंशतिस्तव" के द्वारा जिनेश्वर भगवानों के सद्भूत-गुणों का स्तवन (कीर्तन) होने से दर्शनाचार की विशुद्धि होती है। परमात्मभक्ति सम्यग्दर्शन प्रकट करती है अथवा प्रकट किये गये सम्यग्दर्शन को अत्यन्त निर्मल बनाती है।
(२) "गुरुवन्दन" के द्वारा ज्ञान आदि गुणों से युक्त गुरु भगवंतों की प्रतिपत्ति (सेवा) होती होने से "ज्ञानाचार" आदि की विशुद्धि होती है ।
(४) "प्रतिक्रमण" के द्वारा ज्ञान आदि आचारों के पालन में हुई स्खलनाओं की निन्दा, गर्हा, पश्चाताप आदि करके ज्ञान आदि आचारों की शुद्धि की जाती है।
(५) “कायोत्सर्ग" ध्यान एवं समाधियोगस्वरूप है। इसके द्वारा मन, वचन और काय योगों का प्रतिज्ञा पूर्वक निरोध किया जाता है; जिस से कायोत्सर्ग के द्वारा ज्ञान आदि आचारों की विशेष शुद्धि होती है।
(६) “प्रत्याख्यान" के द्वारा उपवास आदि तप की आराधना होने से “तपाचार" की विशुद्धि होती है ।
उपर्युक्त छःओं आवश्यकों की आराधना (उपासना) के द्वारा आत्मवीर्य (आत्मशक्ति) की वृद्धि होती है जिससे “वीर्याचार्य" की शुद्धि और पुष्टि होती है। वर्तमान में सामायिक का प्रयोग
___ सामायिक विशुद्ध समाधिस्वरूप है और वह जिन-भक्ति, गुरुसेवा . आदि के सतत अभ्यास से ही सिद्ध होती है। इस कारण ही सामायिक लेने की विधि में भी छःओं आवश्यकों का संग्रह किया गया है, जो निम्नलिखित है
(१) सर्व प्रथम दिया जाने वाला "खमासमण" गुरुवन्दन को सूचित करता है।
(२) "इर्यावहियं" प्रतिक्रमण व्यक्त करता है ।
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