SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक सूत्र : शब्दार्थ एवं विवेचना १०५ (1 यातायात-थोड़ा अभ्यास करने के पश्चात् चित्त चिन्तनीय विषय में अल्पकाल तक स्थिर रह सकता है, तब तनिक आनन्दानुभूति होती है, इसे “यातायात अवस्था" कहते हैं। (३) श्लिष्ट - ध्यान के निरन्तर अभ्यास के पश्चात् ध्येय में चित्त स्थिर होता है, तब वह आनन्दमय होता है। वह चित्त की "श्लिष्ट अवस्था" कहलाती है। (४) सुलीन-दीर्घकालीन शास्त्राभ्यास एवं ध्यान-अभ्यास से चित्त ध्येय में अत्यन्त एकाग्र हो जाता है, उसे 'सुलीन अवस्था" कहते हैं। वह परमानन्दमय होती है, अर्थात् ध्याता को उस समय दिव्य आनन्दानुभूति होती है। क्रमशः इन अवस्थाओं में से गुजरने के पश्चात् इनके निरन्तर अभ्यास से 'अमनस्कभाव' अर्थात् चित्त को "उन्मनी अवस्था" प्रकट होती है। एवं क्रमशोऽभ्यासावेशाद्ध्यानं भवेनिरालंबं । समरसं भावं यातः परमानंदं ततोऽनुभवेत् ॥ चित्त की ये अवस्था अभ्यास-साध्य हैं। क्रमानुसार अभ्यास करके "सुलीन अवस्था" सिद्ध करके निरालम्बन ध्यान का आश्रय लेना चाहिये। इस प्रकार निरालम्बन ध्यान के अभ्यास से “समरस-भाव" प्राप्त होने पर परमानन्दानुभूति होती है। _उपर्युक्त श्लोक का अर्थ समझने पर तीनों सामायिकों का अद्भुत रहस्य समझ में आयेगा। प्रथम दो (विक्षिप्त एवं यातायात) अवस्थाओं में कोई भी सामा'यिक प्राप्त नहीं हो सकती। (१) साम सामायिक में चित्त की श्लिष्ट अवस्था होती है। (२) सम सामायिक में चित्त की सुलीन अवस्था होती है। (३) सम्म सामायिक में चित्त की अमनस्क अवस्था (उन्मनी भाव) होती है। प्रथम दो सामायिकों में सालम्बन ध्यान होता है। उनके निरन्तर अभ्यास से निरालम्बन ध्यान को शक्ति प्रकट होती है और निरालम्बन ध्यान के अविरल अभ्यास से “समरस भाव" अर्थात् “सम्म-सामायिक" प्राप्त करके परमानन्दानुभूति की जा सकती हैं। यह परमानन्द की अनुभूति ही वास्तविक "अनुभव-दशा" हैं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy