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________________ सामायिक सूत्र : शब्दार्थ एवं विवेचना ६६ का प्रत्येक द्रव्य स्व-स्व परिणाम का ही कर्त्ता है, परन्तु पर-परिणाम का कोई कर्त्ता नहीं है ।" इस भावना से समस्त भावों का कर्तृत्व मिटाकर साक्षी भाव रखने का अभ्यास किया जा सकता है । सम्म सामायिकवान् साधु के चारित्र - पर्याय की ज्यों-ज्यों वृद्धि होती जाती है, त्यों-त्यों उसके चित्त-सुख ( तेजोलेश्या) की मात्रा में भी वृद्धि होती जाती है । वर्ष भर के दीक्षा पर्याय वाले मुनि का आत्मिक सुख (समता सुख) अनुत्तरवासी देवों के दिव्य सुख को भी मात करने वाला विशिष्ट कोटि का होता है । स्वयंभूरमण समुद्र के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने वाले समता रस के सागर में डुबकियाँ लगाते मुनि की उपमा देने योग्य कोई पदार्थ इस विश्व में विद्यमान नहीं है । ऐसा निरुपम है यह समता सुख और समता का रसास्वादन करने वाले मुनि का जीवन । इस सामायिक में "सामर्थ्य योग" एवं "असंग अनुष्ठान" की प्रधानता होती है । सामायिक भाव में मुनिगण ज्ञानामृत का पान करके, क्रियारूपी कल्पलता के मधुर फलों का भोजन करके तथा समता भावरूपी ताम्बूल का आस्वादन करते हुए सदा परम तृप्ति अनुभव करते हैं। इस सामायिक में चारित्र प्रधान होता है । तन्मयता स्वरूप इस सामायिक में "निरालम्बन योग" का अन्तर्भाव है । "योगविशिका" ग्रन्थ में निरालम्बन योग विषयक विस्तृत विवेचन है, जिसमें से तनिक चिन्तन हम यहाँ करेंगे । "योगविशिका" में अनालम्बन योग-अरूपी सिद्ध परमात्मा के केवल ज्ञान आदि गुणों के साथ समापत्तिरूप ध्यान सूक्ष्म एवं अतीन्द्रिय होने से "अनालम्बन योग" है । "योगविशिका" के विवरण में पूज्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज इसी विषय को अधिक स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि समापत्ति अर्थात् ध्याता, ध्येय एवं ध्यान की एकता । ध्याता अन्तरात्मा है, ध्येय अरिहन्त, सिद्ध परमात्मा के केवलज्ञान आदि गुण हैं और ध्यान विजातीय ज्ञानान्तर रहित सजातीय ज्ञान की धारा है । इन ध्याता आदि तीनों को एकता समापत्ति अर्थात् तन्मयता रूप ध्यान (योग) है, यहो "अनालम्बन योग" कहलाता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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