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________________ सामायिक सूत्र : शब्दार्थ एवं विवेचना ८६ रमण करती है । यह विभाव-रमणता सर्वथा त्याज्य है और स्वभावरमणता ही उपादेय है।" विश्व के समस्त जीवों को अभय बनाकर सुखी करने की परमात्मा की आज्ञा का पूर्णतः पालन केवल मानव ही कर सकता है। समस्त जीवों की सदा जीवित रहने को और सुखी रहने की इच्छा को समझकर तदनुरूप व्यवहार करने की बुद्धि एवं क्षमता केवल मानव को ही प्राप्त है। ___ मानव सर्वविरति स्वीकार करके प्रत्येक जीवात्मा को अभय कर सकता है। उपयोग-शून्य सामायिक नाम मात्र की सामायिक है। उक्त सामायिक मोक्ष साधक नहीं हो सकती। वास्तविक सुखाभिलाषी मुमुक्षु आत्माओं को जिनेश्वर भगवान द्वारा बताई गई भाव-सामायिक को स्वीकार करके उपयोगपूर्वक उसका पालन एवं उसकी रक्षा करनी चाहिये। __ सामायिक के द्वारा समस्त जीवों के कल्याण एवं सुख को सिद्ध करने की शक्ति प्रकट होती है। इस प्रकार "भन्ते' पद के द्वारा देव, गुरु, धर्म, आत्मोपयोग एवं भाव-सामायिक आदि का महत्व बताया गया है, तथा देव-गुरु के प्रति प्रीति-भक्ति, उनकी आज्ञा का पालन और उससे प्राप्त होने वाली असंग दशा को भी गर्भितरूप में सूचित किया गया है। इन समस्त बातों पर सूक्ष्म रूप से चिन्तन करने से समस्त जिनशासन का द्वादशांगी का सार "करेमि भन्ते" में समाविष्ट है, यह स्पष्ट ज्ञात हो सकता है। सामायिक पद का रहस्य "सामायिक" शब्द के विविध अर्थ बताकर शास्त्रों में “सामायिक" का गढ़ रहस्य समझाया गया है जिस पर संक्षिप्त चिन्तन हम यहाँ करेंगे। "समाय" एवं "सामाय" पद को स्व अर्थ में "इक" प्रत्यय लगने से "सामायिक" शब्द बनता है। “सम" एवं “साम" शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं। (१) सम=राग-द्वेष रहित अवस्था । (२) सम=सम्यक्त्व, ज्ञान और चारित्र, मध्यस्थता, समता, प्रशम । (३) सम=सर्वत्र समान व्यवहार । साम–(१) समस्त जीवों के प्रति मैत्री भाव, (२) समस्त जीवों को आत्म-वत् मानकर पीड़ा का परिहार, (३) शान्ति, नम्रता । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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