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सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म
प्रश्न-सावध व्यापार के त्याग से ही नाम आदि सामायिक का निषेध हो जाता है, क्योंकि उसमें सावध व्यापार का त्याग सम्भव नहीं है, अतः "भदन्त" का ग्रहण निरर्थक है। . समाधान-सावध योग की विरति भी नाम आदि भेद से चार प्रकार की है, उसमें भाव-सावद्य-योग विरति के ग्रहण से ही साध्य की सिद्धि हो सकती है। "भदन्त" विशेषण के द्वारा भाव-विर ति का ग्रहण होता है । नाम, स्थापना और द्रव्य विरति कल्याणकारी नहीं है।
___ “भन्ते सामाइयं"-भगवतः सम्बन्धी सामायिक - भगवान द्वारा बताई गई सामायिक को मैं स्वीकार करता हूँ, षष्ठी विभक्ति के अन्त में "भन्ते" पद का अर्थ होता है।
अन्यान्य अनेक दर्शनों में भी सामायिक-संयम की साधना बताई गई होती है, परन्तु उन सबको छोड़कर मैं तो जिनेश्वर भगवान द्वारा निर्दिष्ट सामायिक को ही स्वीकार करता हूँ, क्योंकि मोक्ष-प्राप्ति में यह सामायिक ही अनन्य हेतु है, अन्य दार्शनिकों द्वारा बताई गई एकाकी योगप्रक्रिया के द्वारा मोक्ष प्राप्त होना असम्भव है।
सामायिक के विशेषण के रूप में प्रयुक्त "भन्ते" पद से सामायिक का विशेष महत्व ज्ञात होता है, अर्थात् भन्ते पद से धर्म तत्व का विशिष्ट महत्व बताया जाता है। समस्त धर्मों में सामायिक धर्म ही श्रेष्ठ है और विश्व का कोई भी धर्म इस जिनभाषित सामायिक धर्म की तुलना नहीं कर सकता। ऐसा अद्वितीय है यह सामायिक धर्म ! सम्पूर्ण विश्व को अभय, सुख एवं शान्ति प्रदान करने वाला होने से यही परम श्रेष्ठ धर्म है । अन्य दर्शनों में निर्दिष्ट साधना समस्त जीवों को अभय करने में असमर्थ होने से कल्याणकारी एवं मोक्ष साधक नहीं है।
सुखलिप्सा वाले संसारी जीव अनेक प्रयास करके सुख की खोज करते हैं, परन्तु अन्य जीवों को दुःख एवं पीड़ा देकर प्राप्त किया जाने वाला सुख वास्तविक सुख नहीं है, अपितु दीर्घकालीन महादुःख का कारण है । सच्चा सुख तो समता है ।
अन्य जीवों को पीडित किये बिना और पर-पुद्गल पदार्थ की आशा –अपेक्षा रखे बिना प्राप्त होने वाला सुख ही वास्तविक सुख है । जिनेश्वर भगवान की स्पष्ट आज्ञा है कि, “समस्त जीवों की रक्षा करनी चाहिये, हिंसा का सर्वथा त्याग और अहिंसा को पूर्णतः स्वीकार करना चाहिये। हिंसा से आत्मा विभाव में रमण करती है। और अहिंसा से स्वभाव में
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