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________________ ६० सर्वज्ञ कथित: परम सामायिक धर्म · आय = प्राप्ति, लाभ । सम एवं साम की जिसके द्वारा प्राप्ति हो अथवा जिसमें प्राप्ति हो वह " सामायिक" कहलाती है । " सामायिक" शब्द की अनेक प्रकार से व्युत्पत्ति होती होने से उसमें विविध अर्थ समाविष्ट हैं। संक्षेप में हम कुछ अर्थ देखेंसामायिक अर्थात् राग-द्वेष रहित अवस्था । सामायिक अर्थात् ज्ञान, दर्शन और चारित्र का पालन । सामायिक अर्थात् सर्वत्र समान व्यवहार । सामायिक अर्थात् समस्त जीवों के प्रति परम मंत्री भाव । सामायिक अर्थात् समता - समभाव की प्राप्ति । free विधि से (सामायिक शब्द की व्युत्पत्ति करने से सामायिक का यह अर्थ भी होता है कि "साम, सम एवं सम्म" इन तीनों को "इक" अर्थात् आत्मा में प्रवेश कराना "सामायिक" है । तीन प्रकार की सामायिक (१) साम -- स्व- आत्मा की तरह पर को कष्ट नहीं पहुँचाना । (२) सम–राग-द्व ेष के जनक प्रसंगों में भी मध्यस्थ रहना, अर्थात् सर्वत्र आत्मा का समान व्यवहार । (३) सम्म - सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र का परस्पर आयोजन एकात्म होना अर्थात् तीनों की एकता होना । ये तीनों आत्मा के अतीन्द्रिय परिणाम हैं, उनका स्वरूप स्पष्ट रूप से ज्ञात हो, अतः द्रव्य के साथ उनकी तुलना की जाती है साम - मधुर परिणामस्वरूप है, जैसे शक्कर आदि द्रव्य, और वह सम्यक्त्व सामायिक का सूचक है । सम - स्थिर परिणामस्वरूप है, जैसे तुला (तराजू), और वह श्रुत सामायिक की द्योतक है । सम्म — तन्मय परिणामस्वरूप है, जसे क्षीर-शक्कर का मिलन, और वह चारित्र सामायिक का सूचक है । १ (क) आत्मोपमया परेषां दुःखस्याकरणं - "साम" (ख) रागद्वेष मध्यवर्तित्वम्, सर्वत्रात्मनस्तुल्यरूपेण वर्तनम् - " सम" (ग) सम्यगुज्ञान-दर्शन- चारित्र त्रयस्य परस्पर योजनं "सम्म " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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