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________________ xxxxxपरीपह-जयी** पत्थर की मूर्ति भी मनुष्य की तरह भोजन करती है । सभी भक्तगण वहीं-खड़े रहे कि देखें क्या कौतुक होता है | _ “महाराज हम लोग वर्षों से अनेक मंदिरों में पुजारी के रूप में भगवान की पूजा करते रहे हैं ,पर कभी मूर्ति को न खाते देखा है और न खिला ही सके हैं । क्या आप में यह शक्ति है ? " समन्तभद्र को भगवा वस्त्रों में साधुरूप में देखकर प्रमुख पुजारी ने उन्हें कोई महन्त समझकर उनसे प्रश्न किया । ___ “क्यों नहीं मैंने अनेक बार भगवान को भोग खिलाया है । मैं निश्चित रूप से भगवान शिव को पूरे का पूरा प्रसाद खिला सकता हूँ ।' अधिक दृढ़ता से अपना रोब जमाते हुए समन्तभद्र ने कहा । “ठीक है । कल आप ही भगवान को प्रसाद खिलाना । "चलो महाराज शिवकोटी से आप जैसे सिद्ध महन्त का परिचय कराया जाय । “महाराज की जय हो । शिवमंदिर के प्रमुख पुजारी जी दर्शन के इच्छुक हैं । "मंत्री ने नतमस्तक होते हुए महाराज से निवेदन किया । “जाओ ,उन्हें आदर सहित ले आओ। " महाराज शिवकोटी ने सैनिक को आदेश दिया । कुछ क्षण पश्चात मंदिर के प्रमुख पुजारी ,महन्त-वेशधारी समन्तभद्र को लेकर महाराज के सामने उपस्थित हुए । __ “कहिए पुजारी जी ,कैसे आना हुआ ? आप के साथ ये महन्त जी कौन है ? इन्हें क्यों कष्ट दिया ? " महाराज ने आगन्तुक को देखकर प्रश्न किया। ___ “महाराज मैं इन महन्तजी को जानता तो नहीं हूँ, परन्तु इनका यह दावा है कि ये भगवान शिव को वह सारा प्रसाद खिला देगें ,जो चढ़ावे के रूप में भेजा जाता है । " इतना कहकर पुजारी जी ने वह सारी घटना सना दी । जो कल शाम उन लोगो के बीच चर्चा हुई थी। __महाराज भी इस बात को सुनकर आश्चर्य चकित हुए और उपस्थित मन्त्रिगण भी आश्चर्य से देखने लगे । सब के चेहरे पर अविश्वास की लकीरें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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