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________________ -xviddo परीषह-जयी Android उभर आईं । उन लोगों को विस्मय में देखकर समन्तभद्र ने कहा – “महाराज , मन्त्रिगण और पुजारी जी! आप लोगों को मेरी बात पर विस्मय हो रहा है ,जो मैं आपके चेहरे पर पढ़ रहा हूँ । पर मैं सत्य कह रहा हूँ | मुझे आस्चर्य होता है कि भगवान के नाम पर प्रस्तुत दिव्य प्रसाद महादेव जी को न खिलाकर आप सब लोग खा जाते हैं । अरे जिस भगवान के लिए यह उत्तम प्रसाद बनाया जाता है वही उस से वंचित रह जाता है । यह तो सरासर स्वार्थ है । " ___ "तो क्या महाराज आप साक्षात महादेव जी को बुलाकर यह प्रसाद ग्रहण करा सकेंगे ? " महाराज शिवकोटी ने जिज्ञासा से पूछा । “अवश्य महाराज ।' समन्तभद्र ने उसी दृढ़ता से कहा । इस अभूतपूर्व बात को सुनकर महाराज ने परीक्षण करने हेतु आज रोज से अधिक स्वादिष्ट भोजन के थाल तैयार करवाकर मंदिर में पहुँचाये । महाराज ने महन्त जी से शिवमूर्ति को प्रसाद खिलाने का आह्वान किया । ___ “ठीक है । आप लोग सम्पूर्ण थाल गर्भगृह में रखवाइये । और हाँ ,ध्यान रहे गर्भगृह के कबाट बन्द कर दिये जाएँगे । कोई भी किसी प्रकार की ताकझांक नहीं करेगा । मैं अपनी योगसाधना से शिवजी का आह्वान करूँगा । उन्हें अपने हाथों प्रसाद खिलाऊँगा । यदि कोई यत्किन्चित शंका करके विघ्न बनेगा तो शिवजी अप्रसन्न होंगे और इससे राज्य पर बहुत बड़ा संकट भी आ सकता है ।" इस प्रकार अपनी धाक जमाने के लिए समन्तभद्र ने दृढ़ता से आदेश दिया । नये महन्त के कहने का तरीका ,वाणी की दृढ़ता और आँखों की चमक देखकर सभी लोग गंभीर हो गए । अभी तक भगवान को साक्षात् भोजन कराने की बात को मात्र मजाक समझने वाले राजा मन्त्री और पुजारी भी - ‘राज्य पर अनिष्ट हो जायेगा ।' इन शब्दों से भयभीत हो गए । और उन्होंने वह सब कुछ स्वीकार कर लिया जो महन्त जी ने कहा था । । ____महन्त जी के आदेशानुसार प्रसाद के सभी थाल शिवजी के गर्भगृह में पहुँचा दिये गए और पट बन्द कर दिये गए । महन्त जी अन्दर चले गये । महाराज सहित सभी लोग बाहर इस घटना की सत्ययता जानने की प्रतीक्षा में बाहर रूक गये । समन्तभद्र ने महीनों के बाद ऐसा मिष्टान पकवान ,फल और मेवे बड़ी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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