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Xxxxxxपरीषह-जयीxxxxxxx मानकर समताभाव से सहन करते रहे ... पर कभी शरीर या मन से न तो किसी का हिंसक प्रतिकार किया और न ही उपसर्ग कर्ता के प्रति द्वेष भाव ही माना । इसे वे अपने ही पूर्व अशुभ कर्मों का फल मानकर सहन करते रहे । इन महापुरूषों ने मरण का वरण किया ... पर देहाशक्ति के कारण डिगे नहीं ।
यद्यपि इस कहानी संग्रह की प्रत्येक कहानी का उल्लेख शास्त्रों में हुआ हैं। कहानी के रूपमें भी प्रस्तुति हुई है । पर मैंने उसी कथा को घटना-पात्र को यथावत स्वीकार करते हुए नवीन शैली में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है । उनके तप-त्याग की वैज्ञानिकता प्रस्तुत की है । घटनाओं को साहित्यिकता प्रदान की है । पात्रों की मनःस्थिति को मनोविज्ञान की कसौटी पर कसा है । जैसा कि हर कहानी का उद्देश्य- दृढ़ संयम व परीषह सहन करना है --उसी भाव की पुष्टि की है। .
कितने महान थे मुनि सुकमाल या सुकोशल जिनका सियारनी या व्याघ्री भक्षण करती रही पर उससे बेखबर देहातीत होकर आत्मा में ही खो गये ... मुक्त हो गये । गजकुमार की सहनशक्ति ही मुक्ति का कारण बनी , चिलातपुत्र जैसा दुष्ट ,विद्युतच्चर जैसे खिलाड़ी भी मुक्तिवधू के कंथ बने ...दुष्टों से हारे नहीं । राज्य के समस्त वैभव छोड़कर वारिषेण-जम्बूस्वामी परीषह सहते-सहते आत्मार्थी बनकर मुक्त बने । ब्रह्मचर्य के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले सुदर्शन, जैनधर्म के लिए प्राण अर्पण करने वाले भट्ट अकलंक क्या भुलाये जा सकते हैं ? अनेक ग्रन्थों के रचयिता ,रत्नकरण्डश्रावकाचार के प्रणेता की दृढ़ता और धर्मश्रद्धा के समक्ष अन्य विरोधियों का चमत्कार ही श्रद्धा को दृढ़ बना सका था। इन महान आत्माओं के समक्ष जंगली पशु, निर्दयी अत्याचारी भी परास्त हुए । इनके चरित्र यही संदेश देते हैं कि धर्म के लिए मर तो सकते हैं -अधर्म के लिए जी नहीं सकते । मनुष्य को दृढ़ता से कभी भी नहीं डिगना चाहिए ।
प्रेरणास्त्रोत- इस कथा संग्रह के प्रेरणास्त्रोत हैं पू. उपा. ज्ञानसागरजी महाराज । आपकी प्रेरणा जो सन १९९१ में गयाजी की विद्वत संगोष्ठी में प्राप्त हुई थी । जिससे मैं मृत्युंजयी केवलीराम एवं ज्योतिर्धरा उपन्यास व काहनी संग्रह लिख सका । (जिनका प्रकाशन हो चुका है। प्रथमावृत्ति अनुपलब्ध हैं ।गुजराती अनुवाद प्रकाशित हो चुका है । )इन्हीं मुनिश्री की प्रेरणा से इन परीषहजयी महान आत्माओं के जीवन के आलोक को उजागर करने का यह प्रयत्न कर सका । पू. महाराजजी चाहते हैं कि जैन पुराणों की कथायें नए परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत हों । जिससे नई पीढ़ी प्रेरणा ले सके । इस कार्य के लिए उनका मुझे
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