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गोधूलि की बेला में जंबूकुमार की बारात विवाह मंडप पर पहुँची । दूल्हे की पोशाक और सजधज में वे कामदेव को भी लजा रहे थे । लोग उनके रूप को देखकर चकित थे । चारों कन्यायें जो रूप में इन्द्राणी सी लग रही थीं । वस्त्राभूषण में सजी-धजी विवाह मंडप में आई तो लगा कि जैसे सौन्दर्य ही धरती पर मूर्तरूप धारण करके अवतरित हुआ है । जब उन कन्याओं ने जंबूकुमार के गले में वरमाला डाली तो वातावरण शहनाइयों के स्वर से गूंज उठा । आशीर्वाद के स्वर सुनाई देने लगे । चारों नववधुओं के साथ जंबूकुमार ऐसे शोभा दे रहे थे ,जैसे चाँदनी के बीच चंन्द्र शोभा देता है ।
चारों श्रेष्टियों ने बारातियों का बहुमूल्य भेंट देकर स्वागत किया । उन्होंने अपनी पुत्रियों को धन-धान्य देकर विदा किया । अपनी पुत्रियों को विदा करते समय उन सबके हृदय भर आये । उनके मन आने वाले कल की चिन्ता में भीगे हुए थे । उनका मन मानों उन्हीं से प्रश्न कर रहा था कि-" कल क्या उनकी पुत्रियाँ जंबूकुमार को अपने रूप और प्रेम के वंशीभूत कर सकेंगी ? या वे जंबूकुमार के वैराग्य भाव से प्रभावित होकर दीक्षित हो जायेंगी?'"
चारों नववधुओं के साथ जंबूकुमार और पूरी बारात लौट आई । माँ जिनमती ने प्रसन्नता से नव वधुओं की आरती उतारी । उन्हें रत्नजड़ित आभूषण उपहार में दिये । उनका मस्तक चूमा और उन्हें गृह प्रवेश कराया । इन नव वधुओं की रूप छटा देखकर उन्हें विश्वास होने लगा कि निश्चित रूप से कन्याएँ जंबूकुमार का भाव परिवर्तन कर सकेंगी ।
संध्या का समय हो गया । अपने प्रियतम दिनकर को घर लौटा जानकर संध्या शरमा गई और शर्म से उसके मुख पर लज्जा की लाली छा गई । पूर्व दिशा में बादलों की ओट से चन्द्रमा झाकने लगा । वासन्ती ,समीर की मन्द-मन्द सुगन्ध फैलने लगी । दीप मालिकाओं से महल जगमगा उठा । फूलों से सजे शयन कक्ष को ही उद्यान समझकर भौंरे गडराने लगे । पूरा वातावरण ही मादक और कामोत्तेजक बन गया था । विशेष रूप से सजाये गये शयनकक्ष में दृतियों द्वारा नववधुओं को कक्ष में प्रवेश कराया गया । जंबूकुमार को उनके मित्र शयनकक्ष में प्रवेश कराके अपने-अपने घर चले गए । कक्ष के प्रदीपों की ज्योति मंद कर दी गई । सुगन्धित कर्पूर और अगर जलाये गए | चारों नववधुएँ जंबूकुमार को हावभाव और अंग प्रदर्शन से रिझाने का प्रयत्न करने लगी । एक
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