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________________ -xxxxxxxपरीपह-जयीxxxrrrrrrx “ मन्त्री मैं उस युवक जंबूकुमार को देखना चाहता हूँ जिसने मेरे विषमसंग्राम-शूर होथी को वश में कर लिया । वह हाथी जो ऐरावत सा विशाल भ्रमर सा काला ,जिसके गंड़ स्थल से मद झर रहा था ,जो शेर से भी टक्कर ले सकता है ,जिसने लोहश्रृखलाओं को तृण की भांति तोड़ दिया है और जिसके दौड़ने से नगर के कई मकान धाराशाही हो गए हैं , जिसके कारण मृत्यु के भय से सर्वत्र हा-हाकार मच गया था, जिसने बाग-बगीचों की सुन्दरता को रौंध डाला हैं ,ऐसे मदोन्मत हाथी पर सरलता से विजय पाने वाले उस युवक श्रेष्टी पुत्र को मैं सम्मानित करना चाहता हूँ।" राजा ने मंत्री को जंबूकुमार को सम्मान सहित लाने का आदेश दिया । मन्त्री स्वयं रथ लेकर अरहदास सेठ की हवेली पर पहुँचे और सन्मानसह उसे राजभवन में ले आए । इस कामदेव से सुन्दर युवक को देखकर महाराज अत्यन्त प्रसन्न हुए । उन्होंने जंबूकुमार को स्नेह से गले लगाया । और उच्चआसन दिया । जंबूकुमार का उचित सम्मान किया गया । ____ “महाराज मैं शहस्त्रशृंग पर्वत पर रहने वाला गगनपति नामक विद्याधर हूँ । केरल नाम की नगरी के राजा मृगांग मेरे बहनोई हैं ,मेरी भान्जी विलासवती जो अनुपम सुन्दरी है,उसका विवाह आपके साथ मेरे बहनोई साहब करना चाहते हैं । मेरी भान्जी की सुन्दरता को देखकर रत्नशेखर नामक विद्याधर ने उस कन्या को बलपूर्वक प्राप्त करने के लिए केरल पर आक्रमण कर दिया है । नगरी को चारों ओर से घेर लिया गया है । मेरे बहनोई मृगांग के पास सीमित सैन्यदल है । वे संकट में हैं । वे कल अपने क्षत्रिय धर्म का निर्वाह करते हुए , रत्नशेखर से युद्ध करने के लिए किले से बाहर निकलकर केसरिया करेंगे । मुझे जब समाचार मिला तो मैं उनकी मदद के लिए जा रहा हूँ । रास्ते में आपके नगर एवं आपको देखकर यह समाचार देने के लिए मैं रूका हूँ |" गगनपति नामक विद्याधर ने महाराज को प्रणाम कर ,अपने आगमन का हेतु एवं सम्पूर्ण परिस्थिति से अवगत कराया । ___ महाराज ने यह सब सुनकर गगनपति विद्याधर को आश्वासन दिया और Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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