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________________ परीषह - जयी स्वयं केरल जाकर महाराज मृगांग की सहायता करने का वचन दिया । उन्होंने मन्त्री को सैन्य को तैयार करने का आदेश दिया । " महाराज यदि आदेश दें तो मैं इन विद्याधर के साथ केरल जाकर. महाराज मृगांग की मदद करूँ । पास में बैठे जंबूकुमार ने अतिविनय से आज्ञा चाही । "" महाराज की आज्ञा मिलने पर वे गगनपति के साथ उसके विमान में बैठकर केरल की ओर रवाना हुए । इसके पश्चात महाराज भी अपने सैन्य के साथ रवाना हुए । केरल पहुँच कर जंबूकुमार ने सर्वप्रथम एक कुशल कूटनीतिज्ञ की भांति स्वयं दूत बनकर रत्नशेखर के शिविर में पहुँचे । उसे समझाते हुए कहा - "विद्याधर रत्नशेखर यह तुम्हें शोभा नहीं देता कि तुम किसी की कन्या को बलपूर्वक अपनी पत्नी बनाओ । तुम्हें एक विद्याधर राजा होने के नाते ऐसे पापकर्म के लिए युद्ध नहीं करना चाहिए। तुम हिंसा और कुशील जैसे पापों का बन्ध कर रहे हो, और यह पाप नरक गति में ले जानेवाले हैं । जब तक कोई स्त्री तुम्हारा वरण न करें या कोई पिता अपनी कन्या का प्रस्ताव न लाए तब तक उसके विषय में कुविचार करना भी पाप है । वास्तव में ऐसी कन्या बहन-बेटी की तरह होती है । मैं तुम से अनुरोध करता हूँ और सलाह देता हूँ कि तुम इस युद्ध के घेरे को हटा लो। " जंबूकुमार ने विद्याधर को हर तरह से समझाने की कोशिश की । "" "बाँध लो इस दुष्ट को | क्रोध से बौखलाकर रत्नशेखर विद्याधर ने जंबूकुमार को पकड़कर मार डालने का आदेश अपने सैनिकों को दिया | वह यह भी भूल गया कि दूत अवध्य होता है । रत्नशेखर के इस व्यवहार से जंबूकुमार को भी क्रोध आ गया, और वे सभास्थल में ही उन सैनिकों से युद्ध करने लगे जो उन पर आक्रमण के लिए उद्यत थे । जंबूकुमार ने अपने युद्ध कौशल से शत्रुओं को तितर-बितर कर दिया । उधर महाराज मृगांग भी अपनी सेना को लेकर दुर्ग से बाहर आए और रत्नशेखर पर आक्रमण किया । भीषण युद्ध हुआ । दोनों सेनाओं के योद्धा अपने-अपने दैवी शस्त्रों से प्रहार कर रहे थे । हाथी चिघ्घाड़ रहे थे । घोड़े उत्तेजित थे । धरती मानव और पशु रक्त से लाल हो रही थी । कटे हुए रूंड ११६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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