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18 :: तत्त्वार्थसार
उत्तर-'श्रुत' शब्द का अर्थ 'सुना हुआ विषय' या 'शब्द' ऐसा होता है। यद्यपि श्रुतज्ञान सब प्रकार के मतिज्ञानों के बाद हो सकता है तो भी वर्णनीय व शिक्षायोग्य सर्व विषय शास्त्रों में पाया जाता है
और वे ही विषय श्रुतज्ञान के द्वारा जाने जाते हैं, इसलिए श्रुतज्ञान में श्रुत शब्द का सम्बन्ध मुख्यता की दृष्टि से हो सकता है। शास्त्रज्ञान' के अतिरिक्त भी श्रुतज्ञान हो सकता है। शास्त्रज्ञान श्रुतज्ञान का एक मुख्य अंग है और शास्त्र नाम शब्द व वाक्यों के समूह का है। वाक्य मात्र का ज्ञान जो प्रथम होता है, वह मतिज्ञान ही है, इसलिए श्रुतज्ञान को मतिज्ञानपूर्वक और 'श्रुत' नाम से कहा है।
श्रुतज्ञान की उत्पत्ति आभिनिबोधिक ज्ञानपूर्वक भी कही है। अभिनिबोध अनुमान का नाम है, अनुमान मतिज्ञान का एक भेद है, इसलिए आभिनिबोधिक ज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान की उत्पत्ति होती है, ऐसा मानना यह दिखाता है कि श्रुतज्ञान स्वार्थानुमानपूर्वक होता है, परन्तु केवल ऐसा निश्चय कर लेना ठीक नहीं है, क्योंकि ईहादि ज्ञानों के बाद भी श्रुतज्ञान का हो जाना सम्भव है। श्रुतज्ञान में जो मतिज्ञान को कारण माना जाता है, वह केवल इसलिए कि किसी वस्तु के साधारण ज्ञान हुए बिना विशेषावभासी श्रुतज्ञान एकदम कैसे हो? अर्थात्, श्रुतज्ञान के उत्पन्न करने में प्रथम उत्पन्न हुए मतिज्ञान के विषय का सहारा लेना पड़ता है। इतना ही यहाँ कार्यकारणपना है, इसलिए आभिनिबोधिक का अर्थ मतिज्ञान करना चाहिए।
मति व श्रुत-ये दो ज्ञान थोड़े-बहुत सभी संसारी जीवों में देखे जाते हैं, परन्तु जिन ज्ञानों का वर्णन करेंगे वे सर्व साधारण के अनुभवगोचर नहीं होते। किसी विशेष तपोबल से अथवा पुण्य के उदय से प्राप्त होते हैं। इन्द्रियों के सामर्थ्य से वे ज्ञान दूर हैं, इसीलिए उन्हें 'अतीन्द्रिय ज्ञान' कहते हैं। अतीन्द्रिय ज्ञान के तीन भेद हैं-अवधि, मनःपर्यय और केवल। तीनों ही उत्तरोत्तर बढ़-चढ़कर हैं।
अवधिज्ञान का स्वरूप तथा भेद
परापेक्षां बिना ज्ञानं रूपिणां भणितोऽवधिः॥25॥ अनुगोऽननुगामी च तदवस्थोऽनवस्थितिः।
वर्धिष्णुहीयमानश्च षड्विकल्पः स्मृतोऽवधिः॥26॥ अर्थ-अनुगामी, अननुगामी, हीयमान, वर्धमान, अवस्थित, अनवस्थित-ये छह भेद अवधिज्ञान में पाये जाते हैं। अनुगामी उसे कहते हैं जो क्षयोपशम विद्यमान रहने से मनुष्य एवं तिर्यंचों का साथ बहुत समय तक न छोड़े। कोई-कोई 'अवधि' तो दूसरे भव तक में जाते हुए भी साथ नहीं छोड़ता। जो उत्पन्न होकर जल्दी ही छूट जाए उसे अननुगामी कहते हैं। उत्पन्न होने के समय अवधि का जितना प्रमाण हो उससे फिर जो घटता जाए वह हीयमान है। उत्पत्ति के समय से बढ़ता जाए वह वर्धमान है। जैसा का तैसा ही जो बना रहे, वह अवस्थित कहलाता है और जो घटता बढ़ता रहे वह अनवस्थित कहलाता है। ___पैदा होकर छूट जाए उसे प्रतिपाती कहते हैं और जो केवलज्ञान की उत्पत्ति होने से पूर्वतक बना रहे उसे अप्रतिपाती कहते हैं। ये प्रतिपाती व अप्रतिपाती दो भेद शामिल करने से आठ भेद हो सकते
1. 'स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्कानुमानागमभेदः' (न्या. दी., वा. 3)। यहाँ 'आगम' शब्द से श्रुतज्ञान ही लिया गया है।
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