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________________ विषयानुक्रमणिका :: 49 29 277 277 278 278 278 278 279 279 279 279 280 अनुप्रेक्षा अनित्य-अनुप्रेक्षा का स्वरूप अशरण-अनुप्रेक्षा का स्वरूप संसारानुप्रेक्षा का स्वरूप एकत्वानुप्रेक्षा का स्वरूप अन्यत्वानुप्रेक्षा का स्वरूप अशुचित्वानुप्रेक्षा का स्वरूप आस्रवानुप्रेक्षा का स्वरूप संवरानुप्रेक्षा का स्वरूप निर्जरानुप्रेक्षा का स्वरूप लोकानुप्रेक्षा का स्वरूप बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा का स्वरूप धर्मानुप्रेक्षा का स्वरूप भावनाओं का एक मात्र फल चारित्र के भेद सामायिक चारित्र का स्वरूप छेदोपस्थापन चारित्र का स्वरूप परिहारविशुद्धि चारित्र का स्वरूप सूक्ष्मसाम्पराय चारित्र का स्वरूप यथाख्यात चारित्र का स्वरूप चारित्र का फल संवर तत्त्व को जानने का फल 280 280 280 281 281 281 282 283 283 284 284 सातवाँ अधिकार 285 मंगलाचरण एवं विषय-प्रतिज्ञा निर्जरा के लक्षण व भेद विपाक निर्जरा का लक्षण अविपाक निर्जरा का लक्षण अविपाक निर्जरा का उदाहरण दोनों निर्जराओं के स्वामी तपश्चरण के भेद बाह्य तप के छह भेदों के नाम अवमौदर्य तप का स्वरूप उपवास तप का स्वरूप रस-त्याग तप का स्वरूप 285 285 286 286 287 288 288 1288 289 289 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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