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________________ 48 :: तत्त्वार्थसार अबन्ध योग्य अट्ठाईस कर्मों के नाम सभी कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति सभी कर्मों की जघन्य स्थिति अनुभागबन्ध का स्वरूप प्रदेशबन्ध का स्वरूप योग के भेद पापकर्मों के नाम बन्ध तत्त्व को जानने का फल मंगलाचरण व विषय प्रतिज्ञा संवर का लक्षण संवर के कारण गुप्ति के लक्षण, भेद और फल समितियों के भेद ईर्या समिति का लक्षण भाषा समिति का लक्षण एषणा समिति का लक्षण आदाननिक्षेपण समिति का लक्षण उत्सर्गनिक्षेप-समिति का लक्षण समितियों के पालने का फल दश धर्मों के नाम क्षमा धर्म का स्वरूप मार्दव धर्म का स्वरूप आर्जव धर्म का स्वरूप शौच धर्म का स्वरूप सत्य धर्म का स्वरूप संयम धर्म का स्वरूप तप धर्म का स्वरूप त्याग धर्म का स्वरूप आकिंचन्य धर्म का स्वरूप छठा अधिकार ब्रह्मचर्य धर्म का स्वरूप धर्मप्रवृत्ति का फल परीषहों के नाम व उनको जीतने का फल तप संवर एवं निर्जरा का हेतु : Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 42 43 45 46 47 51 53 54 1 123 467 8 9 10 11 CARTELLA 222 22 12 13 14 15 16 16 17 18 19 19 20 21 23 27 264 264 264 266 267 268 269 269 270 270 270 270 271 271 271 272 272 272 272 272 273 273 273 273 274 274 274 275 275 276 276 276 277 www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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