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________________ विषयानुक्रमणिका :: 47 101 103 आस्रव का उपसंहार पुण्य-पाप का परस्पर भेद एवं समानता आस्रव तत्त्व को जानने का फल पाँचवाँ अधिकार 212 213 214 105 मंगलाचरण और विषय-प्रतिज्ञा बन्ध के हेतु क्या हैं मिथ्यात्व ऐकान्तिक मिथ्यात्व का लक्षण सांशयिक मिथ्यात्व का लक्षण विपरीत मिथ्यात्व का लक्षण आज्ञानिक मिथ्यात्व का लक्षण वैनयिक मिथ्यात्व का लक्षण अविरति का स्वरूप प्रमाद का स्वरूप कषाय का विवरण योग का वर्णन बन्ध का स्वरूप कर्म, आत्मा का गुण नहीं है कर्म की मूर्तिमत्ता मूर्तिकता का हेतु अमूर्तिक से मूर्तिक बनने की युक्ति संसारी जीव को मूर्तिक ठहराने का अनुमान कर्मों का विशेष स्वरूप प्रकृतिबन्ध के भेद कर्मों के उत्तर भेद ज्ञानावरण के पाँच भेद दर्शनावरण के नौ भेद वेदनीय के दो भेद मोहनीय के अट्ठाईस भेद आयुकर्म के चार भेद नामकर्म के तिरानबे भेद गोत्रकर्म के दो भेद अन्तरायकर्म के पाँच भेद बन्ध योग्य कर्म Www 256 257 258 260 260 261 261 263 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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