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________________ विषयानुक्रमणिका :: 45 136 136 136 137 137 138 139 159 162 162 165 छाया के भेद व लक्षण आतप व उद्योत का लक्षण भेद के भेद पुद्गल में बन्धन की योग्यता दो अंश की अधिकता रहने का क्या कारण है बन्ध के भेद अजीव तत्त्व वर्णन का उपसंहार चतुर्थ अधिकार मंगलाचरण व विषय-प्रतिज्ञा आस्रव का लक्षण आस्रव का शब्दार्थ कर्म के दो प्रकार साम्परायिक कर्म के आने के कारण आस्रव की तरतमता के कारण अधिकरण या आश्रय का विस्तारार्थ ज्ञानावरण कर्म के आस्रव-हेतु दर्शनावरण के आस्व-हेतु वेदनीय के प्रथम भेद, असातावेदनीय के आस्रव हेतु सातावेदनीय के आस्रव-हेतु दर्शनमोहनीय के आस्रव हेतु चारित्र मोहनीय के आस्रव-हेतु नरकायु के आस्रव-हेतु तिर्यंचायु के आस्रव-हेतु मनुष्यायु के आस्रव-हेतु देवायु के आस्रव-हेतु अशुभ नामकर्म के आस्रव-हेतु शुभ नामकर्म के आस्रव-हेतु तीर्थंकर नामकर्म के आस्रव-हेतु नीचगोत्र कर्म के आस्रव-हेतु उच्चगोत्र कर्म के आस्रव-हेतु अन्तराय कर्म के आस्रव-हेतु पुण्य-पाप कर्म के आस्रव हेतु व्रत किन्हें कहते हैं व्रत के भेद 166 167 168 169 170 171 172 172 173 174 174 174 178 178 178 179 179 180 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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