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________________ 42 :: तत्त्वार्थसार कौन से कल्पातीत देव चरमशरीरी हैं कल्पवासीपर्यन्त चरमशरीरी कौन से देव हैं लोक का स्वरूप तिर्यचों का क्षेत्र विभाग नारकों का क्षेत्र - विभाग नरकों में उत्पत्तिस्थानों की बिल संख्या नरकों में कर्मकृत दुःख नरकों में स्व-परकृत दुःख मध्यलोक का स्वरूप द्वीप समुद्रों की रचना कुछ क्रमवर्ती द्वीप समुद्रों के नाम जम्बूद्वीप के सात क्षेत्र जम्बूद्वीप के कुलाचल कुलाचलों के सरोवरों का कथन हद व पुष्करों का परिमाण कमलों पर निवासिनी देवियाँ महानदियों के नाम नदियों का प्रवाह किस दिशा में है भरत आदि क्षेत्रों का विस्तार भरत, ऐरावत में हानिवृद्धि का हेतु धातकीखण्ड और पुष्करार्द्ध का स्वरूप मनुष्य क्षेत्र की सीमा मनुष्य के प्रकार देवों के भेद-प्रभेद भवनवासियों के दश भेद व्यन्तरों के आठ भेद ज्योतिष्कों के पाँच भेद वैमानिकों के दो भेद देवों में इन्द्र आदि भेदों का वर्णन देवों में मैथुन कर्म का विचार भवनवासी देवों के निवासस्थान व्यन्तर देवों के निवासस्थान ज्योतिष्क देवों के निवासस्थान वैमानिक देवों के निवासस्थान विमान व पटलों के भेद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 174 175 176 178 179 182 184 185 187 189 190 193 194 197 198 201 202 204 206 208 209 210 212 213 215 216 217 218 218 221 222 223 224 225 226 181888888 85 85 86 86 86 87 87 87 88 88 88 89 89 89 90 90 90 91 91 92 93 93 94 96 97 97 97 97 98 98 99 99 99 100 101 www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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