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________________ 174 :: तत्त्वार्थसार अशुभ नामकर्म के आस्त्रव-हेतु मनो-वाक्-काय-वक्रत्वं विसंवादन-शीलता। मिथ्यात्वं कूटसाक्षित्वं पिशुनास्थिरचित्तता॥44॥ विषक्रियेष्टकापाक-दावाग्नीनां प्रवर्तनम्। प्रतिमायतनोद्यान-प्रतिश्रयविनाशनम्॥45॥ चैत्यस्य च तथा गन्ध-माल्य-धपादिमोषणम्। अतितीव्र-कषायत्वं पापकर्मोपजीवनम्॥46॥ परुषासावादित्वं सौभाग्याकरणं तथा। अशुभस्येति निर्दिष्टा नाम्न आस्रवहेतवः॥47॥ अर्थ-मन, वचन, काय के योग को वक्र रखना, परस्पर विवाद करने की आदत पड़ जाना, मिथ्यादृष्टि बने रहना, झूठे लेख बनाना, झूठी साक्षी देना, चुगली खाना, चित्त अशान्त रखना, किसी को विष दे देना, ईंटों का, चूने का भट्टा-पजाया लगाना, जंगल में आग लगा देना, देव प्रतिमा के स्थान का नाश करना, बगीचा उजाड़ना, सभा-आश्रयस्थानादि का भंग कर देना, जिनेन्द्र देव की प्रतिमा की पूजा के लिए रखे हुए गन्ध-माला-धूप इत्यादि चीजों को चुराना, अतितीव्र क्रोधादि कषाय रखना, पाप कर्मों से जीविका करना, असुहावना, कठोर वचन बोलना, किसी के सौभाग्य का विनाश करना या सौभाग्य न होने देना, ये सर्व अशुभ नामकर्म के आस्रव के कारण हैं। अशुभ गति, अशुभ शरीर, इत्यादि अशुभ नामकर्म आगे लिखेंगे। इनके सिवाय और भी अशुभ नामकर्म के आस्रव के कारण हैं। जैसे-मद करना, दूसरों की निन्दा करना, परस्त्रीवशीकरण में लगना, बहुत बकना, आभूषण पहनने में प्रीति रखना, असत्य बोलना, दूसरों को सदा ठगते रहना इत्यादि भी अशुभनाम कर्म के आस्रव के कारण हैं। शुभनाम कर्म के आस्रव-हेतु संसारभीरुता नित्यमविसंवादनं तथा। योगानां चार्जवं नाम्नः शुभस्यास्रवहेतवः॥ 48॥ अर्थ-संसार से सदा डरते रहना, कभी किसी के साथ झगड़ा विसंवाद न करना, तीनों योगों को सरल रखना, ऐसे कामों से शुभ नाम कर्म का आस्रव होता है। धार्मिक को देखते ही झट से उठ खड़े होना, उसे आगे लाना, उच्चासन देना, प्रमाद न रखना, इत्यादि और भी शुभनाम कर्मास्रव के कारण हो सकते हैं। ___ शुभ नामकर्मों में भी तीर्थंकर नामकर्म सर्वोत्कृष्ट है। अनन्त-अनुपम उसका प्रभाव है। अचिन्त्य विभूति का कारण है। तीर्थंकर नाम कर्म के आस्रव हेतु विशुद्धिदर्शनस्योच्चैः तपस्त्यागौ च शक्तितः। मार्गप्रभावना चैव सम्पत्तिर्विनयस्य च ॥49॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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